झारखंड के 27 मजदूर कैमरून में फंसे हुए हैं। उनके पास न तो खाने के लिए भोजन है, न पानी और न ही पैसे। उन्हें एक एनजीओ ने नौकरी का वादा किया था, लेकिन पिछले चार महीनों से उन्हें खदानों में काम करने के बाद भी कोई वेतन नहीं मिला है। ये मजदूर हजारीबाग, बोकारो और गिरिडीह के रहने वाले हैं और अब घर लौटने के लिए बेताब हैं।
इन मजदूरों ने एक वीडियो संदेश में भारतीय सरकार से अपनी वापसी के लिए मदद की अपील की है। महिला एवं बाल विकास मंत्री, बेबी देवी ने विदेश मंत्रालय से हस्तक्षेप करने की मांग की है। समाजसेवी सिकंदर अली ने भी केंद्र और राज्य सरकारों से जल्द कार्रवाई करने का आग्रह किया है।
यह पहली बार नहीं है जब झारखंड के मजदूरों को विदेश में ऐसी समस्याओं का सामना करना पड़ा है। पिछले साल, मजदूर सऊदी अरब में वेतन न मिलने के कारण फंसे थे। 2022 में, माली में भी मजदूरों ने सरकारी मदद मांगी थी, जब उनके नियोक्ता उनके पासपोर्ट लेकर गायब हो गए थे। झारखंड के इन मजदूरों की स्थिति बहुत गंभीर है। उन्होंने अपनी वीडियो अपील में कहा कि वे बिना भोजन और पानी के कठिन परिस्थितियों में जी रहे हैं। उनके पास वापस लौटने के लिए कोई साधन नहीं है और वे भारत सरकार से मदद की आस लगाए बैठे हैं।
बेबी देवी ने विदेश मंत्रालय को पत्र लिखकर इस मामले में तुरंत हस्तक्षेप करने को कहा है। उन्होंने बताया कि यह मामला बहुत ही गंभीर है और इन मजदूरों को जल्द से जल्द घर वापस लाया जाना चाहिए। सिकंदर अली ने कहा कि मजदूरों की हालत बहुत खराब है और उनकी तत्काल मदद की जानी चाहिए।
यह दुखद है कि हमारे देश के मजदूर, जो बेहतर जीवन की तलाश में विदेश जाते हैं, उन्हें ऐसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भविष्य में कोई भी मजदूर इस प्रकार की स्थिति में न फंसे। इसके लिए विदेश में काम करने जाने वाले मजदूरों की पूरी जानकारी और सुरक्षा व्यवस्था की जानी चाहिए।
सरकार ने कहा है कि वे इस मामले को गंभीरता से ले रहे हैं और मजदूरों की सुरक्षित वापसी के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए जाएंगे। भारतीय दूतावास को भी निर्देश दिया गया है कि वे कैमरून में फंसे मजदूरों की मदद करें और उन्हें तुरंत सुरक्षित स्थान पर पहुंचाएं।
झारखंड के मजदूरों की यह स्थिति एक बड़ी चुनौती है और हमें उम्मीद है कि सरकार उनकी मदद के लिए जल्द ही कदम उठाएगी। उनकी सुरक्षित वापसी के बाद ही उनके परिवारजन चैन की सांस ले सकेंगे। यह समय है जब सरकार को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी और इन मजदूरों की मदद के लिए तुरंत कदम उठाने होंगे।