15 फीसदी से ज्यादा ब्राह्णण वोट वाले 12 जिले माने जाते हैं, ब्राह्मण मतदाता करीब 12 से 14 प्रतिशत माना जाता है, यूपी के 21 मुख्यमंत्रियों में 6 ब्राह्मण रहे। इनमें नारायण दत्त तिवारी 3 बार सीएम रहे, करीब 115 सीटें ऐसी हैं, जिनमें ब्राह्मण मतदाताओं का अच्छा प्रभाव है
जिले-जिले ब्राह्मण सम्मेलन चल रही हैं, इसी कड़ी में अब भगवान परशुराम की मूर्ति स्थापना की होड़ शुरू हो गई है,यूपी विधानसभा चुनाव के ऐलान से पहले ही प्रदेश की सभी प्रमुख पार्टियां ब्राह्मणाें को लुभाने में लगी हुई हैं।
इन जिलों में प्रत्याशी की जीत-हार तय करेंगे ब्राह्मण मतदाता
गोरखपुर, वाराणसी, देवरिया, जौनपुर, बलरामपुर, बस्ती, संत कबीर नगर, महाराजगंज, अमेठी, वाराणसी, चंदौली, कानपुर, इलाहाबाद
उतर प्रदेश / लखनऊ: विधानसभा चुनाव में ब्राह्मण मतदाता एक मजबूत वोट बैंक के रूप में देखा जा रहा है। यही कारण है कि राजनीतिक दलों में होड़ मची हुई है। चाहे समाजवादी पार्टी हो, बसपा, कांग्रेस या सत्तारूढ़ बीजेपी सभी ब्राह्मणों को लुभाने की जीतोड़ कोशिश कर रहे हैं। चुनाव का ऐलान अभी नहीं हुआ है इससे पहले ही तकरीबन सभी पार्टियां पूरे प्रदेश में प्रबुद्ध/ब्राह्मण सम्मेलन, सभाएं आदि कर चुके हैं। यही नहीं प्रदेश में जगह-जगह परशुराम भगवान की मूर्तियां स्थापित हो रही हैं। कहीं अखिलेश परशुराम की मूर्ति, मंदिर का अनावरण कर रहे हैं, तो कहीं भाजपा के नेता। उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण मतदाता करीब 12 से 14 प्रतिशत माना जाता है। इसमें करीब 115 सीटें ऐसी हैं, जिनमें ब्राह्मण मतदाताओं का अच्छा प्रभाव है। करीब 15 फीसदी से ज्यादा ब्राह्णण वोट वाले 12 जिले माने जाते हैं। इनमें बलरामपुर, बस्ती, संत कबीर नगर, महाराजगंज, गोरखपुर, देवरिया, जौनपुर, अमेठी, वाराणसी, चंदौली, कानपुर, इलाहाबाद प्रमुख हैं। यही नहीं पूर्वी से लेकर मध्य, बुंदेलखंड और पश्चिम उत्तर प्रदेश की करीब 100 सीटों पर ब्राह्मण मतदाता भले ही संख्या में ज्यादा न हों लेकिन मुखर होने के कारण सियासी माहौल बनाने/बिगाड़ने का माद्दा रखते हैं।
ब्राह्मण वर्ग की आबादी मुस्लिम और दलितों की आबादी कहीं कम है। लेकिन रणनीति के लिहाज से मुस्लिम और दलित सत्ता में उतनी दखल नहीं रखते, जितनी ब्राह्मण रखता है। प्रदेश में तकरीबन सभी पार्टियों ने इस वर्ग के नेताओं को अपने करीब ही रखा है, इस रसूख का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यूपी के 21 मुख्यमंत्रियों में 6 ब्राह्मण रहे। इनमें भी नारायण दत्त तिवारी तो 3 बार सीएम रहे। यही नहीं हर सरकार में मंत्री पदों पर ब्राह्मणों की संख्या आबादी की तुलना में दूसरी जातियों से बेहतर ही रही। मंडल कमीशन के बाद से यूपी में दलित-ओबीसी राजनीति ने जोर पकड़ा और उसके बाद से अब तक कोई ब्राह्मण सीएम नहीं बन पाया। लेकिन मतदाता के तौर पर इस जाति ने 90 के दशक के दौरान शुरुआती झटकों से उबरते हुए पुराना रसूख फिर से हासिल कर लिया है। यही कारण है कि मनुवाद का सीधा विरोध करने और मंडल कमीशन के बाद बदले सियासी माहौल में सत्ता पर काबिज होने वाली सपा और बसपा भी अब ब्राह्मण वोट बैंक को आकर्षित करने की रणनीति बना रहे हैं।
विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू हो चुकी है। 403 सीटों वाली 18वीं विधानसभा के लिए ये चुनाव फरवरी से अप्रैल के बीच हो सकते हैं। 17वीं विधानसभा का कार्यकाल 15 मई तक है. 17वीं विधानसभा के लिए 403 सीटों पर चुनाव 11 फरवरी से 8 मार्च 2017 तक 7 चरणों में हुए थे। इनमें लगभग 61 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। इनमें 63 प्रतिशत से ज्यादा महिलाएं थीं, जबकि पुरुषों का प्रतिशत करीब 60 फीसदी रहा। चुनाव में बीजेपी ने 312 सीटें जीतकर पहली बार यूपी विधानसभा में तीन चौथाई बहुमत हासिल किया। वहीं अखिलेश यादव की अगुवाई में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन 54 सीटें जीत सका। इसके अलावा प्रदेश में कई बार मुख्यमंत्री रह चुकीं मायावती की बीएसपी 19 सीटों पर सिमट गई। इस बार सीधा मुकाबला समाजवादी पार्टी और भाजपा के बीच है। भाजपा योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे को आगे कर चुनाव लड़ रही है।