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हिजाब के पीछे की किताब, स्कूलों की तोड़ फोड तक पहुंची जातपात की लड़ाई

By Kanwar Thakur

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देश की एकता और अखंडता को ताक पर रख कर मुस्लिम लड़कियों को स्कूलों में हिजाब पहनकर कर आने की राजनेता कर रहे है वकालत

अखण्ड भारत/नोहराधार/पंकज शर्मा:- माता पिता की गौदशाला के बाद हर लड़का लड़की पाठशाला में प्रवेश करते हैं, जहां पर गुरु की पढ़ाई शुरू होती है। यही वह पाठशाला होती है, जहां हर लड़का लड़की पढ़ाई के साथ साथ नैतिकता तथा अनुशासन का पाठ भी सीखते हैं, जो आगे चलकर उन्हें एक अच्छा तथा जिम्मेदार नागरिक बनने में मदद करता है। इसके अलावा पाठशाला में सभी विद्यार्थियों की एक जैसी पोशाक होती है जो विद्यार्थियों में एकता और समता का आभास भी करवाती है, परंतु बड़े दुख की बात यह है कि एक जैसी दिखने वाली एकता और समता की इस स्कूली यूनिफॉर्म के बीच राजनीति तथा धर्म की घुसपैठ हो गई है, जो कि देश की एकता अखंडता तथा समता के लिए आगे चलकर घातक सिद्ध हो सकती है।

हिजाब के पीछे की किताब, स्कूलों की तोड़ फोड तक पहुंची जातपात की लड़ाई

पिछले कुछ दिनों से कुछ स्कूलों में मुस्लिम विद्यार्थी लड़कियों में पाठशाला में स्कूली पोशाक की बजाए हिजाब पहनने की धुन सवार हो गई है। कर्नाटक के स्कूल से शुरू हुई हिजाब पहन कर आने का जिन्न राजस्थान, कोलकाता, उत्तर प्रदेश तथा कुछ अन्य राज्यों में भी प्रवेश कर चुका है। पहले यह है एक आंदोलन मात्र था किंतु अब यह आंदोलन स्कूलों में तोड़फोड़ तक पहुंच गया है। अलग-अलग धर्म तथा संप्रदाय के राजनेता इस पर अपने अलग-अलग तर्क वितर्क देने में मशगूल है। विद्यार्थियों की पहचान बनाने तथा उन्हें एकता के सूत्र में बांधने वाली स्कूल पोशाक के पीछे अलग-अलग पार्टियों के राजनेता भिन्न-भिन्न बयान बाजी कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने में लगे हैं। हिजाब पर बेतुकी तथा भड़काऊ बयानबाजी कर आंदोलन को विध्वंसक बनाने में कोई कसर शेष नहीं छोड़ रहे हैं, राजनेता तथा धर्मगुरु इस बात को भूल रहे हैं कि यही वह स्कूली पोशाक जो सभी विद्यार्थियों को एकता के सूत्र में बांधने का काम करती है। मुस्लिम लड़कियों को कोई भी हिजाब पहनने से कोई नहीं रोक रहा है लेकिन स्कूलों में यदि कोई मुस्लिम विद्यार्थी लड़की हिजाब पहनकर आती है तो शिक्षकों को भी यह पता नहीं चल पाता कि लड़की हिजाब पहनकर स्कूल आई है वह स्कूल की विद्यार्थी है भी कि नहीं या विद्यार्थी की जगह है उसकी बहन स्कूल मैं उपस्थित हो रही है।
हिजाब के पीछे कौन सा चेहरा छुपा है, किसी को कोई पता नहीं। विद्यार्थी लड़की असली है या नकली किस बात का खुलासा करना भी मुमकिन नहीं है। स्कूलों में मुस्लिम लड़कियों को हिजाब पहनकर आने की वकालत करने वाले राजनेता देश की एकता और अखंडता को ताक पर रख रहे हैं। संविधान और कानून की रक्षा की दुहाई तो देते हैं परंतु दूसरी ओर गलत बयान बाजी करके संविधान को तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं, हिजाब पहनने की इस लड़ाई में देश से बाहर की विदेशी ताकतों का हाथों में से भी इनकार नहीं किया जा सकता क्योंकि भारत जिस गति से बेहतर अर्थव्यवस्था तथा एक बड़ी शक्ति बनने जा रहा है, यह बात विदेशी ताकतों को हजम नहीं हो रही है कथा किसी न किसी तरह भारत को बदनाम करने की कोशिश में यह विदेशी ताकतें दिन रात जुटी है।

हिजाब के पीछे की किताब, स्कूलों की तोड़ फोड तक पहुंची जातपात की लड़ाई

हम सभी भारत वासियों को यह बात समझ नहीं पड़ेगी कि स्कूलों से यदि अनुशासन ही गायब हो गया और नैतिकता ही नहीं बचेगी तो पाठशाला को पशु शाला बनने में देर नहीं लगेगी। क्योंकि अनुशासन तथा नैतिकता के गुण ही आगे चलकर विद्यार्थियों को अच्छा इंसान बनाते हैं। उनमें एक दूसरे का आदर्श तथा सम्मान की भावना जगाते हैं, देश के प्रति प्रेम एवं समर्पण की भावना पैदा करते हैं। हमारा संविधान हमें यह इजाजत कतई नहीं देता कि स्कूलों में अलग-अलग धर्मों के विद्यार्थियों की अलग-अलग पोशाक हो। यदि ऐसा हुआ तो स्कूलों में ना तो अनुशासन बचेगा और ना ही विद्यार्थियों में नैतिकता ही बचेगी। राजनेताओं को समझना चाहिए हिजाब को लेकर स्कूलों को राजनीति का अखाड़ा ना बनाएं तथा वही मुस्लिम विद्यार्थी लड़कियों वह भी यह बात सनी चाहिए कि स्कूलों में एक जैसी पोशाक पहन कर आना उनके लिए
धर्म नहीं बल्कि अनुशासन के लिए तथा एकता और समता को बरकरार रखने के लिए भी उतना ही बेहद जरूरी है, क्योंकि किसी भी धर्म से बड़ा देश होता है। उस देश का कानून तथा संविधान बड़ा होता है, न कि धर्म। धर्म तो एक चेहरा है जबकि संविधान एक संपूर्ण शरीर है। यदि शरीर ही नहीं होगा तो चेहरा किस काम का रह जाएगा।