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Sunil Chhetri Last Match : देश के लिए 150 मैच खेलने के बाद अवसर लिया सुनील छेत्री ने, पीछे छोड़ गए एक कभी ना भुलाई जाने वाली महागाथा!

By Shubham

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Summary

स्टार, नेता और हीरो। पिछले कुछ वर्षों से इन तीन विशेषणों के साथ ही Sunil Chhetri को संबोधित किया जाता है। भारतीय फुटबॉल टीम का मैच हो और उसमें Sunil Chhetri खेल रहे हों, तो कम से कम एक बार ये तीन शब्द अवश्य उच्चारित किए जाते हैं। यह विशेषण ...

विस्तार से पढ़ें:

स्टार, नेता और हीरो। पिछले कुछ वर्षों से इन तीन विशेषणों के साथ ही Sunil Chhetri को संबोधित किया जाता है। भारतीय फुटबॉल टीम का मैच हो और उसमें Sunil Chhetri खेल रहे हों, तो कम से कम एक बार ये तीन शब्द अवश्य उच्चारित किए जाते हैं। यह विशेषण यूं ही नहीं आए। Sunil Chhetri ने इन्हें अपनी काबिलियत से अर्जित किया और साबित किया। अपने संन्यास के बाद भी वे ‘कैप्टन, लीडर, लेजेंड’ के रूप में ही याद किए जाएंगे। Sunil Chhetri के जीवन की ओर देखते हुए, इन शब्दों को थोड़ा बदलना पड़ सकता है। क्योंकि कप्तान बनने से पहले ही वे टीम के नेता बन चुके थे। उनकी नेतृत्व क्षमता बहुत पहले ही स्पष्ट हो गई थी।

Sunil Chhetri Last Match : देश के लिए 150 मैच खेलने के बाद अवसर लिया सुनील छेत्री ने, पीछे छोड़ गए एक कभी ना भुलाई जाने वाली महागाथा!

भारतीय फुटबॉल प्रेमियों को 2008 के एएफसी चैलेंज कप के भारत-म्यांमार सेमीफाइनल मैच की याद जरूर होगी। बुरी तरह से गीली कीचड़ से भरी पिच पर फुटबॉल खेलना मुश्किल था। लेकिन मैच के अंत में Sunil Chhetri के एक गोल ने भारत को फाइनल में पहुंचा दिया। यह गोल आज भी कई लोगों के जहन में ताजा है। 2012 के नेहरू कप फाइनल का भी उल्लेख करना जरूरी है। उस समय भारतीय टीम कैमरून के खिलाफ संघर्ष कर रही थी। मैच के अंतिम 15 मिनट में Sunil Chhetri ने पेनल्टी अर्जित की और खुद गोल कर मैच को बराबरी पर ला दिया। टाईब्रेक में कैमरून को हराकर भारत ने ट्रॉफी जीती।

ये दो घटनाएं और कई छोटे-छोटे वाकये Sunil Chhetri की प्रतिभा को साबित करते हैं। उन्होंने साबित कर दिया कि जब भी गोल की जरूरत होती है, वह मौजूद होते हैं। बिना कप्तानी के आर्मबैंड के भी उन्होंने टीम का नेतृत्व किया। अपने प्रदर्शन से दिखाया कि टीम को उनकी जरूरत है। वह चुपचाप युवा खिलाड़ियों को संदेश देते रहे कि उनसे सीखें। अपने पहले से अंतिम मैच तक Sunil Chhetri की प्रतिबद्धता भारतीय टीम के प्रति अटूट रही। उम्र के साथ उनकी गति और धार कम हो सकती है, लेकिन जीतने की भूख और सकारात्मक मानसिकता नहीं बदली। जीतने पर वे कभी ज्यादा उत्साहित नहीं होते और हारने पर भी कभी रोते नहीं। अगले अवसर के लिए खुद को तैयार करते रहते।

क्लब स्तर पर अच्छा प्रदर्शन करने के बाद ही आमतौर पर खिलाड़ी राष्ट्रीय टीम में चुने जाते हैं, लेकिन Sunil Chhetri के मामले में यह उल्टा था। राष्ट्रीय टीम में खुद को साबित करने के बाद ही वे क्लब स्तर पर पहचान बना पाए। 2008 में जेसीटी छोड़ने के बाद उनका फॉर्म थोड़ा गिर गया था। लेकिन फिर Sporting Clube de Goa में उनका अनुभव महत्वपूर्ण साबित हुआ। वहां के आधुनिक प्रशिक्षण और कोचिंग से उन्हें काफी कुछ सीखने को मिला।

Sunil Chhetri Last Match : देश के लिए 150 मैच खेलने के बाद अवसर लिया सुनील छेत्री ने, पीछे छोड़ गए एक कभी ना भुलाई जाने वाली महागाथा!

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बेंगलुरु में शामिल होना उनके करियर का एक और महत्वपूर्ण कदम था। उन्होंने अपने खेल को एक नई ऊंचाई पर पहुंचाया। उनकी फिटनेस के प्रति समर्पण ने उन्हें और आगे बढ़ाया। उन्होंने अपनी डाइट, नींद और अभ्यास पर कोई समझौता नहीं किया। मादक पेय पदार्थों से भी दूर रहे। उन्होंने हमेशा अपने अनुशासन और मेहनत से युवा खिलाड़ियों को सीखने के लिए प्रेरित किया।

Sunil Chhetri ने कभी भी अपने साथियों पर कुछ थोपने की कोशिश नहीं की। वह हमेशा कहते रहे, खेल को और टीम को प्यार करो। यही असली आनंद है। वह हमेशा अगली पीढ़ी को आगे लाने पर जोर देते रहे। उनके जाने के बाद भी भारतीय फुटबॉल में उनका योगदान हमेशा याद किया जाएगा। Sunil Chhetri ने भारतीय फुटबॉल को इंटरनेशनल स्तर तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनकी कड़ी मेहनत और समर्पण ने भारतीय फुटबॉल को एक नई पहचान दी है। उनके बिना भारतीय फुटबॉल की कल्पना करना मुश्किल है।