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माता-पिता की देखभाल नहीं करने वाले बेटों को प्रायश्चित का मौका नहीं… हाई कोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला

By Sushama Chauhan

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डेस्क: कर्नाटक हाई कोर्ट ने एक बड़े फैसले में कहा है कि जो बेटे अपने माता-पिता की देखभाल नहीं करते हैं, उन्‍हें प्रायश्चित का मौका नहीं दिया जा सकता। अदालत ने यह भी कहा कि विवाह अधिकारों को फिर से स्थापित करने के लिए एक कानून है, लेकिन मां को ...

विस्तार से पढ़ें:

डेस्क: कर्नाटक हाई कोर्ट ने एक बड़े फैसले में कहा है कि जो बेटे अपने माता-पिता की देखभाल नहीं करते हैं, उन्‍हें प्रायश्चित का मौका नहीं दिया जा सकता। अदालत ने यह भी कहा कि विवाह अधिकारों को फिर से स्थापित करने के लिए एक कानून है, लेकिन मां को बेटों के साथ रहने के लिए मजबूर करने के लिए कानून में कोई प्रावधान नहीं है।नन्यायमूर्ति कृष्ण एस दीक्षित की अध्यक्षता वाली पीठ ने दो भाइयों, गोपाल और महेश की याचिका पर यह फैसला दिया है। उन्‍होंने अदालत के समक्ष दलील दी थी कि वे अपनी मां की देखभाल के लिए 10-10 हजार रुपये गुजारा भत्ता का भुगतान नहीं सकेंगे।

भाइयों ने दावा किया कि वे अपनी मां की देखभाल करने के लिए तैयार हैं। उनकी मां फिलहाल बेटियों के घर पर रहने के लिए मजबूर हैं। पीठ ने वेदों और उपनिषदों का उल्लेख करते हुए कहा कि अपनी मां की देखभाल करना बच्चों का कर्तव्य है।

‘भगवान की पूजा पहले करें पैरंट्स का सम्मान’

अदालत ने कहा, ‘बुढ़ापे में मां की देखभाल बेटे को करनी चाहिए। तैत्तिरीय उपनिषद में उपदेश दिया गया है कि माता-पिता, शिक्षक और अतिथि भगवान के समान हैं। जो लोग अपने माता-पिता की देखभाल नहीं करते हैं उनके लिए कोई प्रायश्चित नहीं है। भगवान की पूजा करने से पहले, माता-पिता, शिक्षकों और अतिथियों का सम्मान करना चाहिए।’

‘आज की पीढ़ी विफल’

पीठ ने कहा, ‘लेकिन, आज की पीढ़ी अपने माता-पिता की देखभाल करने में विफल हो रही है। यह अच्छा नहीं है कि ऐसी संख्या बढ़ रही है।’ पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि दोनों बेटे शारीरिक रूप से स्वस्थ हैं, इसलिए यह दावा स्वीकार नहीं किया जा सकता कि वे भरण-पोषण नहीं दे सकते।

‘बेटियां न होतीं तो मां सड़क पर होती’

जस्टिस ने कहा, ‘अगर कोई आदमी अपनी पत्नी की देखभाल कर सकता है, तो वह अपनी मां की देखभाल क्यों नहीं कर सकता? एक बेटे को किराया मिल रहा है। बेटों का इस तर्क से सहमत नहीं हुआ जा सकता कि वे अपनी मां का ध्‍यान रखेंगे। एक मां को मजबूर करने का कानून नहीं है। इस बात से भी सहमत नहीं हुआ जा सकता कि बेटियां साजिश कर उसे अपने घर में रहने के लिए मजबूर कर रही हैं। अगर बेटियां न होती तो मां सड़क पर होती।’न्यायमूर्ति दीक्षित ने मां की देखभाल करने के लिए बेटियों की सराहना की। पीठ ने बेटों को अपनी मां को 20 हजार रुपये गुजारा भत्ता देने का भी आदेश दिया।

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क्या है मामला

मैसूरु की 84 वर्षीय वेंकटम्मा अपनी बेटियों के साथ रह रही थीं। अपने बेटे का घर छोड़ने के बाद उन्होंने मैसूरु में प्रभागीय अधिकारी से संपर्क कर गोपाल और महेश से गुजारा भत्‍ता की मांग की थी।

बेटों ने हाई कोर्ट में चैलेंज किया था आदेश

माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण एवं कल्याण अधिनियम के तहत बेटों को अपनी मां को पांच-पांच हजार रुपये देने का आदेश दिया गया। बाद में जिला आयुक्त ने रखरखाव राशि पांच-पांच हजार रुपये से बढ़ाकर 10-10 हजार रुपये कर दी थी। इस आदेश को चुनौती देने वाले भाइयों ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और दावा किया कि वे गुजारा भत्ता नहीं देंगे, बल्कि वे अपनी मां की देखभाल करेंगे।

Sushama Chauhan

सुषमा चौहान, हिमाचल प्रदेश के विभिन्न प्रिंट,ईलेक्ट्रोनिक सहित सोशल मीडिया पर सक्रीय है! विभिन्न संस्थानों के साथ सुषमा चौहान "अखण्ड भारत" सोशल मीडिया पर मोजूदा वक्त में सक्रियता निभा रही है !