Sirmaur के शिलाई के हकाईना के डॉ. बाबू राम शर्मा ने भौतिकी विज्ञान के क्षेत्र में विश्व स्तर पर चमकाया नाम
Sirmaur जनपद के गिरिपार की शिलाई तहसील के छोटे से गाँव हकाईना के डॉ. बाबू राम शर्मा ने भौतिकी विज्ञान के क्षेत्र में विश्व स्तर पर अपना नाम चमकाया है। उन्होंने कोरियाई 15 सदस्यीय टीम के साथ मिलकर कठोर हीरे को मध्यम दबाव में तरल पदार्थ मे बदलने की एक अनूठी प्रकिया विकसित की है।
आम तौर पर कठोर हीरे को तरल करने के लिए धरती का तापमान काफी नही होता इसको बदलने के लिए पूर्व में वैज्ञानिकों को धरती के अंदर के तापमान का सहारा लेना पड़ता था। फिर जैसे जैसे तकनीक विकसित हुई यह कार्य बडी बडी लेबोरेटरी में तापमान में धरती के तापमान पैदा कर इसे प्राकृतिक रूप दिया जाने लगा। जिसके लिए अत्यधिक दबाव के कारण समय अधिक लगने लगा। इस टीम ने इस दबाव की सामान्य करके इतिहास रच दिया है। अब यह कार्य चंद मिनटों में हो जाएगा। जो भारत देश के लिए ऊर्जा भंडारण में सहायक होगा।
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आमतौर पर हीरे को प्राकृतिक रूप देने के लिए अरबों साल लगते हैं और कृत्रिम रूप से तैयार होने में कई सप्ताह लगते हैं। लेकिन इन शोधकर्ताओं ने एक विशेष तरल धातु मिश्रण का उपयोग करके एक नई विधि विकसित की।जिसमें अब यह काम धरती के तापमान पर भी सफलता से संभव हो पाएगा। इसके पहले हीरे को तरल पदार्थ में बदलने के लिए धरती के अंदर के तापमान का सहारा लेना पड़ता था।
इस कार्य में जिसमें डॉ बाबू राम शर्मा ने अहम भूमिका निभाई है जो Sirmaur के शिलाई के एक छोटे से गांव से संबंध रखते हैं। उनके पिता का नाम अमर सिंह शास्त्री एवं माता का नाम धर्मी देवी है। इनकी प्राथमिक शिक्षा गवर्नमेंट स्कूल हकाईन में हुई और दसवीं कक्षा गवर्नमेंट स्कूल द्राबिल में हुई। B.Sc गवर्नमेंट कॉलेज नाहन और M. Sc गुरुनानक देव यूनिवर्सिटी अमृसर पंजाब से करने के बाद इन्होंने GATE की परीक्षा पास की। इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस (IISC) बेगलुर से Ph. D पास की।
इस तकनीक के विकसित होने से, स्पेस टेक्नोलॉजी, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों लिथियम, चार्जिंग बैटरी, ऊर्जा भंडारण लेजर सामग्री में उपयोग करने में सहायक होगा। अभी वो वर्तमान में विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रोफेसर Rodney Ruoff के साथ दक्षिण कोरियाई टीम के साथ काम कर रहे हैं।
गौरतलब है कि शोधकर्ताओं ने मध्यम दबाव की स्थिति में हीरे के उत्पादन के लिए एक नए तहल धातु मिश्र धातु प्रणाली तैयार की है। अब सामान्य वायुमंडलीय दबाव पर केवल 150 मिनट में हीरे विकसित कर सकती है। यह नई तकनीक हीरे के उत्पादन के लिए पारंपरिक रूप से आवश्यक अत्यधिक दबाव की आवश्यकता को समाप्त कर देती है।
दक्षिण कोरिया के इंस्टीट्यूट फॉर बेसिक साइंस की एक टीम के नेतृत्व में शोधकर्ताओं का मानना है कि इस पद्धति को महत्वपूर्ण औद्योगिक अनुप्रयोगों के लिए बढ़ाया जा सकता है। हालाँकि तरल धातु में कार्बन को घोलना कोई नया विचार नहीं है, लेकिन पिछले तरीकों में अभी भी उच्च दबाव और हीरे के बीज शामिल हैं। यह नया दृष्टिकोण तरल धातुओं – गैलियम, लोहा, निकल और सिलिकॉन के एक विशिष्ट मिश्रण का उपयोग करता है – जिसे मीथेन और हाइड्रोजन गैसों के साथ एक निर्वात कक्ष में तेजी से गर्म किया जाता है।
इन स्थितियों के कारण कार्बन परमाणु तरल धातु में निलंबित हो जाते हैं, जिससे हीरे के क्रिस्टल बीज बनते हैं। केवल 15 मिनट में हीरे के छोटे-छोटे टुकड़े निकल आते हैं और 150 मिनट में एक सतत हीरे की फिल्म बन सकती हैं।
बातचीत में Sirmaur के डॉ बाबूराम शर्मा ने बताया कि ऐसा नहीं है कि इसके पहले धरती पर यह कार्य सम्भव नहीं था। अपितु उसके लिए लैबोरेटरी में बड़ी बड़ी मशीनों से तापमान को कंट्रोल करना पड़ता है हमने इसके दबाव को कम करके वर्षों का काम चंद मिनटों में कर दिया है। जो भारत के लिए ऊर्जा भंडारण में सहायक होगा। जिसके कारण आने वाले समय में भारत भी अन्य देशों की तरह ऊर्जा के क्षेत्र में विश्व में नाम होगा