हल्द्वानी हिंसा मामले को लेकर APCR ने अपनी रिपोर्ट दे दी है। इसमें नगर आयुक्त की भूमिका सवालों के घेरे में है।
एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स ने हल्द्वानी हिंसा पर अपनी एक फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट जारी की है। जिसमें उन्होंने नगर निगम आयुक्त से लेकर सफाई कर्मियों तक की भूमिका को लेकर सवाल उठाए हैं। इसके साथ ही उन्होंने हिंसा में मरने वाले लोगों की संख्या को भी ज्यादा बताया है।
हल्द्वानी के लोगों सहित कई व्यक्तियों को बंदी बनाया- रिपोर्ट
एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स की इस फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में कहा गया है कि “आधिकारिक आंकड़ों का दावा है कि केवल 30-36 लोगों को हिरासत में लिया गया है, लेकिन सच्चाई अलग है। पुलिस ने टॉर्चर चैंबर जैसे डिटेंशन सेंटर बनाए हैं। जहां अलग-अलग कारणों से दूसरे शहरों में रहने वाले हल्द्वानी के लोगों सहित कई व्यक्तियों को बंदी बनाया गया है।”
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इसके साथ ही इस रिपोर्ट में कहा गया है कि “गिरफ्तारी से ज्यादा हिरासत में लिए गए हैं जिन्हें रखने के लिए 15 किलोमीटर दूर एक स्कूल में एक सेंटर बनाया गया है। स्थानीय लोगों का कहना है कि वहां पर 5000 से ज्यादा लोगों को रखा गया है।
पुलिस ने आरोपों से किया इंकार
एपीसीआर की रिपोर्ट में लगाए गए इन आरोपों से पुलिस ने इंकार किया है। पुलिस के पीआरओ दिनेश जोशी ने कहा है कि “ऐसा कोई डिटेंशन सेंटर नहीं है। स्कूल सामान्य रूप से काम कर रहा है और वे अपनी बोर्ड परीक्षा आयोजित कर रहे हैं।”
रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि हल्द्वानी हिंसा मामले में मुख्यमंत्री का बयान भी प्रासंगिक है क्योंकि उन्होंने ‘3000 मजारों के तोड़े जाने को’ अपनी सरकार की उपलब्धि बताया है। जबकि उन्होंने जंगल और नजूल भूमि में अनाधिकृत हिंदू धार्मिक संरचनाओं के बारे में ज्यादातर चुप्पी साध रखी है।
रिपोर्ट में फैक्ट फाइंडिंग की टीम ने कहा कि हल्द्वानी हिंसा में लव जिहाद, लैंड जिहाद, व्यापार जिहाद और मजार जिहाद के ध्रुवीकरण वाले नैरेटिव, दावों और मुसलमानों के आर्थिक और सामाजिक बहिष्कार के आह्वान ने भी अशांति बढ़ाने में भूमिका निभाई है।
नगर निगम आयुक्त की भूमिका पर उठ रहे सवाल
हल्द्वानी हिंसा में इस रिपोर्ट के मुताबिक नगर आयुक्त पंकज उपाध्याय की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि 31 जनवरी को उनका तबादला कर दिया गया था लेकिन उन्होंने फिर भी अपना नया पदभार क्यों नहीं संभाला। इसके साथ ही वो आठ फरवरी को मुसलमानों को गाली देते हुए, मुस्लिम महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करते हुए देखे गए।
सफाई कर्मियों की भूमिका भी सवालों के घेरे में
इस रिपोर्ट के मुताबिक बनभूलपुरा हिंसा मामले में सफाई कर्मियों की भूमिका भी सवालों के घेरे में हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि वाल्मिकी समुदाय के सफाई कर्मचारियों ने मुसलमानों पर हमला करने में पुलिस का साथ दिया। जिसे देख के ऐसा लग रहा है कि उनका हमला “मुस्लिम विरोधी नफरत और कट्टरपंथ का हिस्सा” था। क्योंकि वाल्मिकी समुदाय के एक संजय सोलंकर ने भी अपने पड़ोसी फहीम की हत्या कर दी थी।