शूलिनी विश्वविद्यालय के बायोलोजिकल, पर्यावरण विज्ञान स्कूल, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद समेत दर्जनो संस्थानों के अध्ययन में हुआ खुलासा, वनस्पतियों के औषधीय गुणों को नहीं जानती नई पीढ़ी, वनस्पतियों का दस्तावेजीकरण नहीं हुआ तो वनस्पतियों के औषधीय गुण अपनी पहचान खो देंगे
शिमला, सोलन: प्रदेश में नई पीढ़ी सैकड़ों वनस्पतियों के औषधीय गुणों को नहीं जानती है। समय रहते इन वनस्पतियों का दस्तावेजीकरण नहीं किया गया तो ये अपनी पहचान खो देंगी। यह खुलासा शूलिनी विश्वविद्यालय सोलन के बायोलोजिकल और पर्यावरण विज्ञान स्कूल और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) समेत अन्य संस्थानों के अध्ययन में हुआ है। यह अध्ययन सुनील पुरी, ममता ठाकुर, सोनिया राठौर, सूरज प्रकाश आदि विशेषज्ञों और शोधार्थियों ने किया है। इस शोध को एक स्थानीय जर्नल में सामने लाया गया है।इससे विभिन्न रोगों का उपचार होता है और ऐसा कई वर्षों से किया जा रहा है।
अधिकतर वनस्पतियों की पत्तियों, जड़ों का ज्यादा इस्तेमाल,लोगों से हासिल जानकारी
वनस्पतियों के रोगों के निदान की सूचना का दस्तावेजीकरण नहीं किया गया है। ग्रामीणों से यह भी जानकारी मिली कि नई पीढ़ी को इसकी जानकारी में कोई रुचि नहीं है। इसका कारण समाज में आधुनिकीकरण का होना है। ऐसे में पारंपरिक औषधीय गुणों वाली दवाओं के दस्तावेजीकरण की अत्यंत जरूरत है। अध्ययन में 25 से 75 साल के लोगों से जानकारी हासिल की गई। 114 लोगों में से 76 पुरुषों और 38 महिलाओं से संवाद किया गया। यह पाया गया कि पुरुषों को महिलाओं की तुलना में इसका ज्यादा ज्ञान था। रोगों के निदान के लिए अधिकतर वनस्पतियों की पत्तियों का अधिक इस्तेमाल होता है। पूरे पौधे, फूलों, तने, बीज, फल, कोंपलों आदि का भी उपयोग होता है।