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भाईचारे को बढ़ावा देने पहुंचे 40 गाव के 15 हजार से अधिक लोग, “गर्मजोशी से स्वागत”, शांति से साथ रहने की खाई कसमें

By अखण्ड भारत

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Summary

More than 15 thousand people from 40 villages arrived to promote brotherhood, "warmly welcome", vows to live together in peace

विस्तार से पढ़ें:

शिलाई के कोटीबौंच मे तीन दशकों बाद हुआ “शांत महायज्ञ”, यज्ञ मे प्रदेश व पड़ोसी राज्य से पहुंचे हजारो भग्त, “देवी ठारी” का लिया आशीर्वाद

शिलाई: विकास खंड शिलाई की ग्राम पंचायत कोटीबोंच में चल रहे “शांत महायज्ञ” का विधिवत समापन हो गया है। कबायली संस्कृति को संजोए “शांत महायज्ञ” प्रदेश में अलग संस्कृति प्रस्तुत करता है। “शांत महायज्ञ” में क्षेत्र के खशिया खुंदो सहित अन्य सभी उपजातियों में एकता व भाईचारे की अनूठी परंपरा देखने को मिलती है। “शांत महायज्ञ” के दौरान शिलाई के कोटीबोंच पंचायत में सिरमौर, जिला शिमला व उत्तराखंड प्रदेश के लगभग 40 गावों के हजारों लोगों ने एक साथ, एक मंच पर लिम्बर नृत्य, रासा नृत्य, देवी ठारी माता की आराधना सहित एक साथ भोजन रूपी प्रशाद ग्रहण करके आपसी भाईचारे की अनूठी पहल देखने को मिली है। यहां से देश ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व को सीख मिलती है कि आपसी भाईचारे से बड़ी कोई शक्ति नहीं है।

भाईचारे को बढ़ावा देने पहुंचे 40 गाव के 15 हजार से अधिक लोग, "गर्मजोशी से स्वागत", शांति से साथ रहने की खाई कसमें

जटिल सामग्री का इस्तेमाल करके “शांत महायज्ञ” 32 सालों बाद करवाया गया है

ग्रामीणों के अनुसार कोटीबोंच में “शांत महायज्ञ” लगभग 32 सालों बाद करवाया गया है। यह यज्ञ भव्य तरीके से सम्पन्न करवाया गया है। बड़ी जटिल सामग्री का इस्तेमाल यज्ञकुंड में आहुति के लिए एकत्रित किया जाता है। इसलिए कई वर्षो बाद यज्ञ को संपन्न करवाया जाता है। सभी ओपचारिकताएं पूर्ण होने के बाद विरादरी के सभी खशिया खुंदों को आमंत्रित किया जाएगा। सभी लोगों के माध्यम से पूजा, अर्चना करने के बाद यज्ञकुंड में आहुतियां दीजाती है। इस दौरान जहां गांव, क्षेत्र, प्रदेश और देश में शांति, प्रेम और आपसी भाईचारे को बनाएं रखने की कसमें खाई जाती है, वही देवी ठारी माता की शक्तियों को जागृत करके, आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए हजारों लोग अपना शीश देवी चरणों में नवाते है। इस तरह “शांत महायज्ञ” को सफल बनाया गया है।

भाईचारे को बढ़ावा देने पहुंचे 40 गाव के 15 हजार से अधिक लोग, "गर्मजोशी से स्वागत", शांति से साथ रहने की खाई कसमें

गर्मजोशी से किया गया श्रद्धालुओं, भग्तों, मेहमानों का स्वागत, बिरादरी के लोग कर रहे खुद को गौरवान्वित महसूस

अनूठी परंपरा के मिलन का प्रतीक “शांत महायज्ञ” के हवनकुण्ड में हरकोई आहुतियां डालने को बेकरार रहा। कोटीबोंच में जनसैलाब इस कदर उमड़ा मानों देवी ठारी माता का खुद बुलावा गया हो। यज्ञ में आने वाले श्रद्धालुओं, भग्तों, मेहमानों के स्वागत में ग्रामीणों ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। गांव के सरपंच सहित बुद्धिजीवी वर्ग, नौजवान, महिलाएं सभी मेहमानों के स्वागत में मुख्यद्वार पर खड़े होकर आवभगत करते रहे। और पारंपरिक शस्त्र “डांगरा” देकर लिंबर नृत्य, रासा नृत्य के साथ कंधो पर उठाकर मेहमानों को “शांत महायज्ञ” स्थल तक लाया जाता रहा। जिससे बिरादरी के लोग खुद को गौरवान्वित महसूस करते रहे।

भाईचारे को बढ़ावा देने पहुंचे 40 गाव के 15 हजार से अधिक लोग, "गर्मजोशी से स्वागत", शांति से साथ रहने की खाई कसमें

“शांत महायज्ञ” से खत्म हो जाती है बुरी शक्तियाँ, पारंपरिक शस्त्र “डांगरा” नृत्य, लिंबर नृत्य, रासा नृत्य के साथ वीर, वीरगनाओं की गाथाओं मे लोग नाटी की रहती है धूम

बताया जाता है कि “शांत महायज्ञ” विधिवत पूर्ण होने के बाद देवी ठारी माता की शक्तियां जागृत हो जाती है। यज्ञ के दोरान सवा लाख मंत्रो का उच्चारण करके आहुती दी जाती है। और देवी से आराधना की जाती है कि देवी अपनी शक्तियों के प्रभाव से गांव, प्रदेश, देश में आपसी भाईचारे के साथ सभी देशवासियों को सद्बुद्धि प्रदान करें। यज्ञ से बुरी शक्तियों का नाश हो होता है। बुरी आत्माएं खत्म हो जाती है। महामारी जैसी जटिल बीमारियों से क्षेत्रवासियों को झुटकारा मिलता है। देवीय शक्ति के प्रमाण मिलने के बाद से देवी ठारी माता को प्यार, भाव, और अटुट आस्था होने के कारण यज्ञ को विधिवत पूर्ण किया जाता है।

भाईचारे को बढ़ावा देने पहुंचे 40 गाव के 15 हजार से अधिक लोग, "गर्मजोशी से स्वागत", शांति से साथ रहने की खाई कसमें

पारंपरिक संस्कृति की अनूठी, अद्भुत व अकल्पनीय मिसाल प्रस्तुत करता है

“शांत महायज्ञ”

क्षेत्रवासी, कबायली संस्कृति की तर्ज पर “शांत महायज्ञ” दशकों से करवाते आ रहे है। और इस यज्ञ को कबाइली संस्कृति की अहम कड़ी माना जाता है। बेरहाल 40 गावों के लगभग 15 हजार से अधिक लोगों ने “शांत महायज्ञ” में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई, हारूल नृत्य, रासा नृत्य, डांगरा नृत्य के साथ, एक साथ एक मंच पर प्रशाद ग्रहण करके पारंपरिक संस्कृति की अनूठी, अद्भुत व अकल्पनीय मिसाल प्रस्तुत होती है।

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