कुल्लू : देवी-देवताओं के महाकुंभ अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा का सोमवार को लंका दहन के साथ समापन हो गया है। लंका दहन में अधिष्ठाता रघुनाथ सहित करीब 50 देवी देवताओं ने भाग लिया। इसके लिए भगवान रघुनाथ दशहरा मैदान स्थित अपने अस्थायी शिविर से लेकर रथ में सवार होकर लंकाबेकर तक गए। हजारों लोगों ने रथ को खींचकर लाया। इस दौरान ढोल-नगाड़े, नरसिंगे, करनाल आदि वाद्यंयत्रों की स्वरलहरियों से पूरी घाटी गूंज उठी। शाम करीब 4:00 बजे के आसपास इस परंपरा को निभाने की प्रक्रिया आरंभ शुरू हुई। लंका बेकर में रस्मों की अदायगी को भगवान रघुनाथ के मुख्य छड़ीबरादार महेश्वर सिंह द्वारा किया जाता है। भगवान श्री राम के उदघोष के साथ लंका दहन में राजपरिवार की कुलदेवी माता हिडिंबा, माता दोचा मोचा, माता शरबरी सहित अन्य देवियां भी पहुंचीं।
लंका पर विजय पाने के बाद भगवान रघुनाथ पालकी में सवार होका रघुनाथपुर के लिए रवाना हुए। लंका दहन के इस अलौकिक, अद्भुत व भव्य दृश्य को देखने के लिए लोगों में भारी भीड़ उमड़ी। लंका दहन के दिन अधिकतर देवी-देवता भी अपने देवालयों के लिए रवाना हो गए हैं। दशहरा उत्सव के छठे दिन रविवार को मोहल्ला (महामिलन) मनाया गया। सात दिवसीय दशहरा उत्सव में 300 से अधिक देवी-देवताओं ने भगवान रघुनाथ के दरबार में हाजिरी भरी। देवी-देवताओं की ओर से राजा की चानणी के पास भी देव परंपरा का निर्वहन किया। देवी-देवता अपने अस्थायी शिविरों में ही विराजमान रहे।