आजादी के 70 साल बाद देश में गरीबी दूर होने के अच्छे समाचार मिल रहे हैं, व्यक्ति या परिवार वित्तीय संसाधनों के न होने के कारण अपने जीवन निर्वाह के लिए बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ होता है
नसीब में जैसी जिंदगी थी ठीक है, जैसे जीना पड़ा जी लिया, लेकिन बच्चों को ऐसी जिंदगी जीने के लिए मजबूर नहीं करेंगे, उसे अवसर चाहिए, गरीब ही गरीबी को परास्त कर सकता है, गरीब ही गरीबी के खिलाफ लड़ने वाली मेरी फौज का सबसे बड़ा सिपाही है, उसी को मैं ताकतवर बना रहा हूं: नरेंद्र मौदी
दिल्ली: 200 साल की गुलामी से जब देश आजाद हुआ तो अंग्रेज हमारे लिए गरीबी, भुखमरी और लाचारी छोड़कर गए थे। अपने पैरों पर खड़े होकर भारत ने धीरे-धीरे कदम बढ़ाए। 17 साल बाद तक हालात कैसे थे, यह तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के एक विदेशी पत्रकार को दिए वीडियो इंटरव्यू में देखा जा सकता है।
भारत कृषि पर आधारित अर्थव्यवस्था है। पत्रकार सवाल करता है कि मैंने कृषि क्षेत्र को नोटिस किया है और आप अब भी चिंतित हैं क्योंकि भारत को विदेश से आयात किए जाने वाले खाद्यान्न पर निर्भर रहना पड़ता है। नेहरू ने कहा कि हम खाद्यान्न के लिए विदेश पर निर्भर रहना नहीं चाहते। आजादी के बाद के वर्षों में भारत ने अपने इस्तेमाल के लिए काफी खाद्यान्न पैदा करना शुरू कर दिये है। नए तरीके अपनाए जा रहे हैं जिससे उत्पादन को बढ़ाया जा सके। यूट्यूब पर उपलब्ध नेहरू के इंटरव्यू को देखिए तो पत्रकार के सवाल से आप आसानी से समझ सकेंगे कि देश कितनी परेशानियों से जूझ रहा था। भारत को गरीबी के पोस्टरबॉय की तरह देखा जाता था। लेकिन आज भारत ने विकास की उड़ान भर ली है। इंदिरा गांधी ने ‘गरीबी हटाओ’ का नारा देकर जो सपना देखा था वह आज पूरा होते दिख रहा है।
जी हां, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 8 साल के शासन के बाद देश को अच्छी खबर मिली है। विश्व बैंक ने कहा है कि भारत में अत्यंत गरीबों की संख्या घटी है। दरअसल, भारत के बारे में दुनिया में आम धारणा रही है कि प्राकृतिक संसाधनों से धनी, लेकिन गरीबों का देश है। अब यह धारणा बदल रही है। यह भी सुखद है कि भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। भारत में गरीबी कम होने की खबर ऐसे समय में आई है जब 100 साल में सबसे खतरनाक कोरोना वेव का देश और दुनिया ने सामना किया है। कुछ साल पहले भारत में नोटबंदी भी की गई थी। अच्छी बात यह है कि शहरों की तुलना में गांवों में गरीबी तेजी से दूर हो रही है। एक्सपर्ट का मानना है कि महामारी भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश में गरीबी दूर करने की कोशिशों में तगड़ा झटका है।
घर, जल, शौचालय, बिजली, आय सबका इंतजाम, गरीब ही गरीबी के खिलाफ फौज का सबसे बड़ा सिपाही : मोदी
विश्व बैंक की रिपोर्ट कहती है कि एक दशक के भीतर भारत अपनी अंतिम 10 फीसदी आबादी को अत्यंत गरीबी के दलदल से निकाल सकता है। भारत में उपभोग में असमानता और वेतन में विसंगतियां तेजी से खत्म हो रही हैं। भारत की विशाल आबादी को दो जून की रोटी उपलब्ध कराने के साथ गरीबी हटाने की कोशिशें तो 50 साल पहले ही शुरू हो गई थीं। साठ के दशक के अंत में यह महसूस किया जा रहा था कि आर्थिक नीतियां केवल सीमित वृद्धि ला पाई हैं। लाभ का वितरण भी एकसमान नहीं था। प्रधानमंत्री के तौर पर इंदिरा गांधी अर्थव्यवस्था पर बुरा असर डाल रही तेजी से बढ़ती कीमतों से चिंतित थीं। उन्हें पता था कि इस स्थिति ने गरीबों को सबसे ज़्यादा प्रभावित किया है। चौथी पंचवर्षीय योजना की तैयारी में उन्होंने आबादी के कमजोर वर्गों पर विशेष फोकस किया। राजनीतिक विरोधियों ने इंदिरा हटाओ का नारा लगाया तो इंदिरा ने ‘गरीबी हटाओ’ की आवाज बुलंद की। 1971 के चुनाव में गरीबी की खूब चर्चा रही।
सरकार ने गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम बनाए और इसमें सीधे गरीब और वंचित लोगों को फायदा पहुंचाने की कोशिश की गई। इंदिरा गांधी अपने एजेंडे पर बिल्कुल स्पष्ट थीं। 15 अगस्त, 1975 को लाल किले की प्राचीर से दिए अपने संबोधन में इंदिरा गांधी ने कहा था, ‘कृपया जादुई उपाय और नाटकीय परिणाम की उम्मीद न करें। केवल एक ही जादू है जो गरीबी को दूर कर सकता है और वह है स्पष्ट दृष्टिकोण से किया गया निरंतर कठिन परिश्रम, दृढ़ इच्छा और सख्त अनुशासन।’ 20 सूत्रीय कार्यक्रम बने। इसमें आवश्यक वस्तुओं की कीमतों को कम करना, भूमिहीन मजदूरों, छोटे किसानों और कारीगरों से कर्ज की वसूली पर रोक के लिए कानून लाना, सरकारी खर्च में सख्ती, बंधुआ मजदूरी पर कारवाई जैसे कदम शामिल थे। अतिरिक्त भूमि ग्रामीण गरीबों के बीच वितरित की जाने लगी।
सरकारों ने इसी मॉडल को आगे बढ़ाया। राजीव गांधी के बाद नरिसम्हा राव की सरकार ने आर्थिक उदारीकरण लागू किया। नई सदी में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों में सत्ता आई तो उन्होंने सबको घर, सबको जल, फ्री शौचालय, किसानों की आय दोगुनी और मुफ्त राशन जैसे कदमों से समाज के सबसे कमजोर वर्ग को ताकत देने का काम किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि गरीबी दूर करने के लिए हमें उन्हें (गरीबों को) सशक्त करना होगा। प्रधानमंत्री आवास योजना का लक्ष्य समाज के कमजोर वर्गों के लिए 2 करोड़ से ज्यादा घर बनाना था। नया घर खरीदने पर होम लोन में ब्याज सब्सिडी भी दी जा रही है। यह तो एक योजना है। ऐसे ही गांवों में रहने वाले गरीबों की बात करें तो उनके लिए आवास, शौचालय और पानी की व्यवस्था के साथ-साथ फ्री में राशन की व्यवस्था भी की जा रही है। दो साल पहले जब कोरोना के कहर के चलते गरीबों के लिए चूल्हा जलाना मुश्किल हो गया था। सरकार ने उन्हें निश्चित मात्रा में राशन देना सुनिश्चित किया।
विश्व बैंक की रिपोर्ट पढ़ लीजिए, 12% गरीब घटे
रिपोर्ट के मुताबिक भारत में अत्यंत गरीबों की संख्या घटी है। साल 2011 से 2019 के बीच अत्यंत गरीबों की संख्या में 12.3 प्रतिशत की कमी आई है और इस मामले में शहरों के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों का प्रदर्शन बेहतर रहा है। अर्थशास्त्री सुतीर्थ सिन्हा रॉय और रॉय वैन डेर वेइड ने यह दस्तावेज तैयार किया है। इससे पहले, अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (IMF) के एक दस्तावेज में कहा गया था कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना ने महामारी से प्रभावित 2020 में अति गरीबी को 0.8 प्रतिशत के निचले स्तर पर बरकरार रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस योजना के तहत गरीबों को राशन की दुकानों से मुफ्त अनाज दिया जा रहा है। भारत में गरीबी पर रिपोर्ट में कहा गया है, ‘ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी की दर में कमी शहर के मुकाबले अधिक है।’ लेखकों का कहना है कि नोटबंदी के दौरान शहरी गरीबी 2016 में दो प्रतिशत बढ़ी और उसके बाद उसमें तेजी से कमी आई। गांवों में गरीबी 2019 में 0.1 प्रतिशत बढ़ी जिसका कारण संभवत: आर्थिक वृद्धि में नरमी है। 2015-2019 के दौरान गरीबी में कमी पूर्व के अनुमान से कम होने का अनुमान है जो निजी अंतिम खपत व्यय में वृद्धि पर आधारित है। लेखकों ने यह भी कहा कि उनके विश्लेषण में खपत के मामले में असमानता बढ़ने का कोई सबूत नहीं पाया गया। रिपोर्ट के अनुसार, छोटे जोत वाले किसानों की आय में वृद्धि अधिक हुई है। किसानों की वास्तविक आय सालाना आधार पर 10 प्रतिशत बढ़ी है। वहीं बड़े जोत वाले किसानों की आय में इस दौरान दो प्रतिशत की वृद्धि हुई है। गांवों में जिस परिवार के पास खेतों का आकार छोटा है, उनके दूसरों के मुकाबले गरीब होने की आशंका अधिक है।
तेंडुलकर समिति ने बताया था कि भारत की कुल आबादी के 21.9 % लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करते हैं। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में शहरी क्षेत्र में रह रहे परिवारों के लिए गरीबी रेखा को 1000 रुपए (प्रति व्यक्ति प्रति माह) और ग्रामीण परिवारों के लिए 816 रुपये निर्धारित किया था। बाद में रंगराजन समिति ने गांवों के लिए आय को 972 रुपये प्रति महीने और शहरी इलाकों में आय को 1407 रुपये प्रति महीने बताया।