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कैसे बनता है बजट, देश के लिए क्यों महत्वपूर्ण, 1 अप्रैल से लागू होता है बजट

By Kanwar Thakur

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करीब 6 महीने पहले से शुरू हो जाती है बजट बनाने की तैयारी, आम बजट से एक दिन पहले सदन में पेश किया जाता है इकोनॉमिक सर्वे अखण्ड भारत टीम/दिल्ली:- वित वर्ष 2022-23 का बजट आज वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पेश करने जा रही हैं। बजट पर पूरे देश की ...

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करीब 6 महीने पहले से शुरू हो जाती है बजट बनाने की तैयारी, आम बजट से एक दिन पहले सदन में पेश किया जाता है इकोनॉमिक सर्वे

अखण्ड भारत टीम/दिल्ली:- वित वर्ष 2022-23 का बजट आज वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पेश करने जा रही हैं। बजट पर पूरे देश की नजरें टिकी होती हैं, इससे न केवल सरकार देश की आर्थिक स्थिति का लेखा-जोखा पेश करती है, बल्कि इसी से देश के आर्थिक भविष्य की रूपरेखा भी तय की जाती है। इस साल का बजट ऐसे समय में आ रहा है जब देश कोरोना की तीसरी लहर से जूझ रहा है, ऐसे में ये आम के लिए और भी महत्वपूर्ण है।

देश में किसी साल उत्पादित प्रोडक्ट या सर्विसेज के मौजूदा बाजार मूल्य को जीडीपी कहते हैं। जीडीपी यानी ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट। देश का बजट इसी पर आधारित होता है। दरअसल, बिना जीडीपी के बजट बनाना संभव नहीं होता। बिना जीडीपी को जाने सरकार यह तय नहीं कर सकती कि उसे राजकोषीय घाटा कितना रखना है।साथ ही जीडीपी के बिना सरकार ये भी नहीं जान पाएगी कि आने वाले साल में सरकार की कितनी कमाई होगी। कमाई का अंदाजा लगाए बिना सरकार के लिए ये तय करना भी मुश्किल होगा कि उसे कौन सी योजना में कितना खर्च करना है।

भारतीय संविधान के आर्टिकल 112 के अनुसार, केंद्रीय बजट देश का सालाना फाइनेंशियल लेखा-जोखा होता है।केंद्रीय बजट किसी खास वर्ष के लिए सरकार की कमाई और खर्च का अनुमानित विवरण होता है। सरकार बजट के जरिए विशेष वित्तीय वर्ष के लिए अपनी अनुमानित कमाई और खर्च का विवरण पेश करती है।यूं कहें कि किसी वर्ष के लिए केंद्र सरकार के वित्तीय ब्योरे को केंद्रीय बजट कहते हैं। सरकार को हर वित्त वर्ष की शुरुआत में बजट पेश करना होता है। भारत में वित्त वर्ष का पीरियड 1 अप्रैल से 31 मार्च तक होता है। देश का केंद्रीय बजट इसी अवधि के लिए पेश किया जाता है। दरअसल, बजट के जरिए सरकार यह तय करने का प्रयास करती है कि आगामी वित्त वर्ष में वह अपनी कमाई की तुलना में किस हद तक खर्च कर सकती है।

केंद्रीय बजट को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है, पहला रेवेन्यू बजट, ये बजट सरकार की कमाई और खर्च का लेखा-जोखा होता है। इसमें सरकार को मिलने वाला रेवेन्यू प्राप्ति या कमाई और रेवेन्यू खर्च शामिल होते हैं। सरकार को मिलने वाला रेवेन्यू प्राप्ति या कमाई दो तरह की होती है- टैक्स और नॉन-टैक्स रेवेन्यू से होने वाली कमाई। रेवेन्यू खर्च सरकार के रोज के कामकाज और नागरिकों को दी जाने वाली सर्विसेज पर होने वाला खर्च है। यदि सरकार का रेवेन्यू खर्च उसकी रेवेन्यू प्राप्ति से ज्यादा होता है, तो सरकार को राजस्व घाटा या रेवेन्यू डेफिसिट होता है।

दूसरा कैपिटल बजट या पूंजी बजट, इसमें में सरकार की कैपिटल रिसीट या पूंजीगत प्राप्तियां और उसकी ओर से किए गए भुगतान शामिल होते हैं। सरकार की कैपिटल रिसीट या प्राप्तियों में जनता से लिया गया लोन, विदेशी सरकारों और भारतीय रिजर्व बैंक से लिए गए लोन का विवरण होता है। वहीं कैपिटल एक्सपेंडिचर या पूंजीगत खर्च में सरकार का मशीनरी, उपकरण, घर, स्वास्थ्य सुविधाओं, शिक्षा पर होने वाला खर्च शामिल होता है। सरकार को राजकोषीय घाटा तब होता है जब सरकार का कुल खर्च उसकी कुल कमाई से ज्यादा हो जाता है।

देश में मौजूदा वित्त वर्ष की अवधि 1 अप्रैल से 31 मार्च तक होती है। बजट पेश होने के बाद इसे संसद के दोनों सदनों यानी लोकसभा और राज्यसभा से पास कराना जरूरी होता है। दोनों सदनों से पास होने के बाद बजट आगामी वित्त वर्ष के पहले दिन यानी 1 अप्रैल से लागू हो जाता है।

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देश के आम बजट से एक दिन पहले इकोनॉमिक सर्वे सदन में पेश किया जाता है। बजट 2022 का इकोनॉमिक सर्वे 31 जनवरी 2022 को पेश किया गया। आर्थिक सर्वे अगले वित्त वर्ष के लिए जीडीपी का अनुमान होता है। आर्थिक सर्वे देश की अर्थव्यवस्था का एक वार्षिक रिपोर्ट कार्ड होता है जो हर क्षेत्र के प्रदर्शन की जांच करता है और फिर भविष्य के कदम का सुझाव देता है। भारत का पहला इकोनॉमिक सर्वे 1950-51 में पेश किया गया था। 1964 तक इसे आम बजट के साथ पेश किया जाता था, लेकिन उसके 1965 से इसे बजट से अलग कर दिया गया।

बजट बनाने की तैयारी करीब 6 महीने पहले, यानी आमतौर पर सिंतबर में ही शुरू हो जाती है। सितंबर में मंत्रालयों, विभागों, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सर्कुलर जारी कर आने वाले वित्तीय वर्ष के लिए उनके खर्चों का अनुमान लगाते हुए उसके लिए जरूरी फंड का डेटा देने को कहा जाता है। इन आंकड़ों के आधार पर ही बाद में बजट में जनकल्याण योजनाओं के लिए अलग-अलग मंत्रालयों को फंड एलोकेट होते हैं। बजट बनाने की प्रक्रिया शुरू होने के बाद वित्त मंत्री, वित्त सचिव, राजस्व सचिव और व्यय सचिव की हर दिन बैठक होती है। अक्टूबर-नवंबर तक वित्त मंत्रालय दूसरे मंत्रालयों-विभागों के अधिकारियों के साथ मीटिंग करके ये तय करते हैं कि किस मंत्रालय या विभाग को कितना फंड दिया जाए। बजट बनाने वाली टीम को पूरी प्रक्रिया के दौरान प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री और योजना आयोग के उपाध्यक्ष के इनपुट लगातार मिलते रहे हैं। बजट टीम में अलग-अलग क्षेत्र के विशेषज्ञ शामिल होते हैं।बजट बनाने और इसे पेश करने से पहले कई इंडस्ट्री ऑर्गनाइजेशन और इंडस्ट्री के जानकारों से भी वित्त मंत्री चर्चा करती हैं। बजट से जुड़ी सारी चीजें फाइनल होने के बाद एक ब्लूप्रिंट तैयार किया जाता है। बजट को लेकर सब कुछ तय होने के बाद बजट दस्तावेज प्रिंट होता है। 2020 से ही देश में पेपरलेस बजट पेश किया जा रहा है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 2020 और 2021 में पेपरलेस बजट पेश कर चुकी हैं।