काठमांडू: कहते हैं कि दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है। इसे ब्रिटिश आर्मी के एक पूर्व गोरखा सैनिक ने सच कर दिखाया है। दरअसल, इस सैनिक ने अफगानिस्तान युद्ध में अपने दोनों पैर खोने के बावजूद दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह किया है।
इसके साथ ही हरि बुद्ध मागर ने माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाले पहले डबल-टू-नाइट एंप्टी बनने की उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की है। उनके अलावा एक लोहे के पैर के साथ 2006 में न्यू जोसेन्डर मार्क इंगलिस और 2018 में चीन के जिया बोयू एवरेस्ट की सफल चढ़ाई कर चुके हैं। अब पूरी दुनिया में हरि बुद्ध मागर नाम के इस गोरखा सैनिक के जज्बे की तारीफ हो रही है। 2010 में अफगानिस्तान में एक बारूदी सुरंग की चपेट में आने के कारण हरि बुद्ध मागर के दोनों पैर उड़ गए थे।
हिम बिस्ता ने बताया कि हरि बुद्ध मागर शुक्रवार को नेपाली समय के अनुसार शाम 3 बजे सागरमाथा के शीर्ष पर पहुंचे। नेपाल में माउंट एवरेस्ट को सागरमाथा कहा जाता है। दुनिया की सबसे ऊंची चोटी को फतह करने के बाद वह सुरक्षित रूप से अपने बेस कैंप लौट आए। उनके सोमवार को काठमांडू पहुंचने की संभावना है। 43 वर्षीय हरि बुद्ध मागर ने 2010 में अफगानिस्तान में एक गश्त के दौरान गलती से एक बारूदी सुरंग पर पैर रख दिया था। इस कारण उन्हें अपने दोनों पैर गंवाने पड़े थे। यह घटना तब हुई जब वह गोरखा सैनिकों के साथ अफगानिस्तान में ड्यूटी पर तैनात थे।
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, विस्फोट के तुरंत बाद जब हरि बुद्ध मागर को होश आया तो उन्हें लगा कि वह मर चुके हैं। उन्हें अपने तीन बच्चों की याद आने लगी। हालांकि, बाद में उचित उपचार मिलने और स्कीइंग, गोल्फ, साइकिलिंग और चढ़ाई करने के बाद उसका आत्मविश्वास वापस आ गया। उन्होंने 11 दिन पहले एवरेस्ट को फतह करने के लिए नेपाली पर्वतारोहियों की एक टीम के साथ कृष थापा के नेतृत्व में अपने अभियान की शुरुआत की थी। कृष थापा खुद एक पूर्व गोरखा सैनिक और एसएएस माउंटेंन ट्रूप लीडर थे।
हरि बुद्ध मागर के कृत्रिम पैरों को ब्रिटेन में फिट किया गया था। उन्होंने इन पैरों के साथ आइल ऑफ वाइट के चारों ओर कयाकिंग से लेकर मोरक्को में माउंट टूबकल के साथ-साथ स्कॉटलैंड में बेन नेविस और यूरोप में मोंट ब्लांक सहित कई चोटियों पर चढ़ाई की। उनका सपना एवरेस्ट की चढ़ाई करने का था, लेकिन एक नेपाली कानून, जो पर्वतों पर दोनों पैरों से अपंग या अंधे लोगों के पर्वतारोहण पर प्रतिबंध लगाता है, ने उनका रास्ता रोक दिया। 2018 में नेपाल की शीर्ष अदालत ने उस कानून को रद्द कर दिया और दिव्यांगों के भी माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई करने का रास्ता खुल गया।