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हिमाचल : खून की जगह युवाओं की रगो में दौड़ती ड्रग्स, अधिक सजग रहने की आवश्यकता

By Sandhya Kashyap

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शिमला : ज्यों-ज्यों मर्ज की दवा कर रहे है त्यों-त्यों दर्द बढ़ता ही जा रहा हैं। देश की नई पीढ़ी चिट्टे जैसे मादक पदार्थ ऐसे चट कर रहे है जैसे चींटिया चीनी को चाट-चाट कर चट कर जाती है। देश में नशीले पदार्थों का सेवन करने से जुड़े अपराधिक मामले डरावने और भयानक है। इनको समझने के लिए आंकड़ो की जरूरत नहीं है क्योकि देश की हर गलियों मे रोजाना ऐसे मामले देखने को मिल रहे है।  जिन चिरागो से घर में रोशनी की उम्मीद है वो चिराग नशे की झोंक मे गुल हो चुके है, तो कई गुल होने की राह पर है। देश नशे के उस स्याह दौर में पहुँच गया है जहा माता-पिता को बच्चों की पढ़ाई से अधिक यह चिंता खाए जा रही है कि कहीं उनके बच्चे नशे का ग्रास तो नहीं बन रहे है।  हमारे आधुनिक, सभ्य व उन्मुक्त समाज की काली सच्चाई यह भी है कि नशा अभियान के नाम पर हर गाँव, शहर, गली, कूचे, सड़क, स्कूल, कॉलेज में नारे बुलंद किए जा रहे है। लाखों रूपय का खर्चा भी किया जाता है बावजूद उसके युवा वर्ग ही नहीं बल्कि छोटे बच्चे भी ड्रग्स के जद में धसते जा रहे है।  आलम यह हो गया है कि ड्रग्स का जहर मासूमों के रगो में खून की जगह दौड़ने लगा है और साँसो तक पहुँच गया है।  छात्र शिक्षा के मंदिर में पहुंचने से पहले नशे का घूंट गटक कर आते है।  

उल्लेखनीय है कि हिमाचल प्रदेश में मंडी जिले के करसोग उपमंडल की स्कूल की 13 वर्षीय छात्रा नशे मे धुत होके स्कूल पहुँच गयी थी। इतना ही नहीं जिला सिरमौर का उतराखंड के साथ सटा क्षेत्र नशे के खेप प्रदेश मे पंहुचने के लिए बदनाम है।  यदि बात हिमाचल और उतराखंड की तमसा नदी की जाए तो उस नदी के उस पार से चरस, गाँजा, भांग, धतूरा, अफीम के अलावा केमिकल मादक पदार्थों में हेरोइन, कोकेन, चिट्टा, कोरेक्स, नशीले इंजेक्शन और नशे की गोलियों की खेप आसानी से उपलब्ध हो रही है। प्रदेश के अंदर ऊना, कांगड़ा, हमीरपुर, बिलासपुर जिलों में तो परचून की तरह मादक पदार्थ मिल जाते है। जिला सिरमौर, ऊना, कांगड़ा, हमीरपुर मादक पदार्थ के लिए रेड जॉन में रखा जाए तो गलत न होगा।  इन जिलो में काला धंधा करने वाले सौदागर छुपे बैठे है। एनडीपीएस एक्ट के तहत आने वाले अपराधों में हिमाचल, पंजाब के बाद दूसरे स्थान पर जबकि चरस के मामले में हिमाचल देश में चौथे स्थान पर गिना जाता है। प्रदेश में हुए सर्वे पर नजर दौड़ाई जाए तो हिमाचल की लगभग 75 लाख की आबादी गिनी जाती है जिसमें हर वर्ष लगभग 2 लाख युवा ड्रग्स की चपेट में आ रहे है। कोरोना संक्रामण के दौरान प्रदेश में लोकडाउन की स्थिति होने बावजूद भी प्रदेश के आंकड़ो मे कोई कमी दर्ज नहीं की गई है। यहाँ यह कहना गलत न होगा जहां प्रदेश में भूखमरी जैसे हालत बन गए थे उस समय प्रदेश मे नशे की खेप मे कोई कमी नहीं आई, इसलिए प्रदेश की सरकार की प्रशासनिक कार्यप्रणाली पर सवाल उठना लाजमी है।  

नशाखोरी मात्र कानून से जुड़ा मामला नहीं है बल्कि माता-पिता, अध्यापको सहित समाज का भी दायित्व है। यह समाज की परिणति है किसी से छुपा नहीं है कि विवाह, पार्टी व अन्य विभिन्न प्रकार के समारोह में सार्वजनिक तौर पर मदिरापान सहित अन्य विभिन्न प्रकार

की खरीददारी बड़े शौक से की जाती है। समारोह में खूब खातिरदारी करके नशे की जड़ को मजबूत किया जा रहा है इस दौरान अद्भुत चीज समझकर गाँव समाज के बच्चे नशे की जद में जाने के लिए प्रेरित हो जाते है। अपने मुख से उगलते सिगरेट के लच्छों के बीच नशे से बच्चो  को दूर करने की सीख कितनी कारगर सिद्ध हो रही है? अक्सर देखा जाता है कि बच्चे घर से स्कूल आते है परंतु इनका ठिकाना स्कूल पहुंचने की जगह हेरिटेज भवन या टूटी फूटी इमारतों की दीवारों के अंदर रहता है।  घंटो सुनसान जगह पर रहकर मंडलियाँ बनाते और उस मंडली में स्मैक, कोरेक्स, चिट्टा, चरस, गांजा , अफीम, भांग के कश की लपटों के बीच डूबे रहते है। 

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हिमाचल प्रशासन नशा विरोधी अभियान को चलाने के लिए हर वर्ष लाखो रुपये खर्च करता है बावजूद उसके नशे के अजगर को खत्म करना गले की फांस बन गया है।  खेद का विषय है जिसे देश की शक्ति कहा जाता वही युवा नशे की गर्द की और दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। जहां माता- पिता एक-एक पैसा जोड़कर बच्चों के लिए भविष्य के सपने देखते है वही नशे में डूबा युवा एक चुटकी में बुजुर्गों के सपने को ध्वस्त कर रहा है। इसलिए वक्त रहते जाग जाना जरूरी है, मालूम नहीं कब नशा घर के चिराग को गुल करके आपके जीवन में अंधेरा कर जाए। अब सजग हो जाने का वक्त आ चुका है। ड्रग्स की तस्करी व  काले धंधे करने वाले माफियाओं के खिलाफ हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा व उत्तराखंड की सरकारों को सांझे तौर पर सजगता से काम करने की आवश्यकता है। 

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