पणजी: गोवा की एक महिला को तीस साल बाद जाकर इंसाफ मिला है। जहां तीन दशकों से चले आ रहे एक संपत्ति विवाद में गोवा की बॉम्बे हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया है। इस मामले में बहनों का अधिकार हड़पने के लिए भाइयों की ओर से प्रयास किया गया था। पिता की मौत के 30 साल बाद महिला को उसका हक मिला है। हालांकि गोवा की रहने वाली महिला की मौजूदा उम्र अब 80 साल हो चुकी है।
कोर्ट ने कहा कि लड़की की शादी में दहेज देने का यह कतई मतलब नहीं कि उसका कानूनी तौर पर संपत्ति में हक नहीं है। कोर्ट ने कहा कि लड़का-लड़की दोनों का ही माता-पिता की संपत्ति पर बराबर हक होता है। इसलिए इस मामले में महिला को उसका हक दिया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति महेश सोनक ने 16 मार्च को दिए गए फैसले में कहा, ‘सिर्फ इसलिए कि बहनों में से एक ने भाइयों के पक्ष में गवाही दी है। इसका मतलब यह नहीं है कि पारिवारिक व्यवस्था या मौखिक विभाजन का मुद्दा सही साबित हो जाएगा।
घर की बेटियों कुछ दहेज दिया गया था। इसका मतलब यह नहीं है कि बेटियों का पारिवारिक संपत्ति में कोई अधिकार नहीं है। हाई कोर्ट ने कहा, ‘बेटियों के अधिकारों को खत्म नहीं किया जा सकता। जिस तरह से भाइयों ने पिता की मृत्यु के बाद बेटियों के हक को हड़पने का प्रयास किया है।’ इस मामले में अपीलकर्ता ने 1994 में 8 सितंबर, 1990 के ट्रांसफर डीड को शून्य घोषित करने के लिए एक विशेष दीवानी मुकदमा दायर किया और अनिवार्य निषेधाज्ञा की मांग की।
अपीलकर्ता और अन्य सह-मालिकों की ओर से कहा गया कि बिना हमारी लिखित सहमति के संपत्ति कैसे किसी को दे दी गई। जिसे रोकने के लिए एक स्थायी निषेधाज्ञा के लिए भी कोर्ट में मांग की गई। भाइयों ने अदालत से कहा कि उनकी चार बहनों की शादी के समय उन्हें पर्याप्त दहेज दिया गया था। भाइयों ने कहा कि उनकी और उनके पिता की साझेदारी थी। एक दुकान और दुकान के नीचे की संपत्ति इस साझेदारी के जरिए कवर की गई थी। भाइयों ने कोर्ट में तर्क दिया कि अपीलकर्ता और उसकी तीन बहनों का दुकान में कोई अधिकार नहीं था।
अदालत ने कहा, ‘जहां तक मौखिक बंटवारे की दलील का संबंध है। सबसे पहले तो इस तरह की दलील को बनाए रखने के लिए कोई सबूत नहीं है। केवल यह कहना कि कुछ पारिवारिक व्यवस्था थी जिसके जरिए चार बेटियों को उनके विवाह के समय दहेज दिया गया था। परिवार की व्यवस्था या मौखिक विभाजन के अवयवों को स्पष्ट करने के लिए अपर्याप्त है।अदालत ने आगे कहा, ‘संहिता के अनुच्छेद 2184 के संदर्भ में एक विभाजन जो केवल एक संयुक्त स्थिति का विच्छेद है। उसे मौखिक रूप से प्रभावित नहीं किया जा सकता है और यह आवश्यक रूप से एक लिखित दस्तावेज के जरिए होना चाहिए।
अदालत ने यह भी कहा, ‘यह स्पष्ट है कि संहिता के अनुच्छेद 1565 के प्रावधान अभी भी लागू हैं। इसलिए उक्त लेख के मुताबिक मां बाकी बेटों और बेटियों की सहमति के बिना दुकान के हिस्से को अपने दो बेटों को ट्रांसफर करने की हकदार नहीं थी। कोर्ट ने इसके पीछे संहिता के अनुच्छेद 1565 का हवाला दिया। जिसमें कहा गया है कि माता-पिता या दादा-दादी बच्चों या पोते-पोतियों को बेचने या गिरवी रखने के हकदार नहीं होंगे। अगर बाकी बच्चे या पोते बिक्री या गिरवी रखने के लिए सहमति नहीं देते हैं।