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बोरियों में भरकर लाने से मिलेगी निजात, पनीरी लगाने के बाद रोपा जाएगा आलू बीज

By अखण्ड भारत

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Summary

Getting rid of filling in sacks, potato seeds will be planted after planting

विस्तार से पढ़ें:

आलू के कंदों से ही नहीं, बल्कि अब मूल बीज से फसल की पैदावार कर सकेंगे, किसानों को खेतों में बीजने के लिए बाजार से बोरियों में आलू भरकर लाने की जरूरत नहीं होगी और न ही आलू काटकर खेतों में बीजा जाएगा

शिमला: केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (सीपीआरआई) शिमला ने पहली बार आलू बीज (ट्रू पोटेटो सीड) तैयार किया है। इसे निजी कंपनियों के जरिये किसानों को उपलब्ध करवाना शुरू कर दिया है। बीज से पहले खेतों में पनीरी तैयार करेंगे, उसके बाद तैयार पौध रोपी जाएगी। यह आलू बीज देश के पहाड़ी, पूर्वोत्तर और पूर्वी मैदानी राज्यों को लक्षित कर बनाया गया है। कंद वाले आलू बीज के मुकाबले लागत बेहद कम हो जाएगी। बता दें कि इस बीज की तकनीक को सीपीआरआई पटना ने विकसित किया है। अब पहली बार इसका उत्पादन शिमला में किया गया है। सीपीआरई शिमला ने 92-पीटी-27 के नाम से इसे मान्यता दी है। इस आलू बीज की फसल को पानी की उपलब्धता वाले किसी भी क्षेत्र में उगाया जा सकेगा। देश के किसान अब आलू के कंदों से ही नहीं, बल्कि अब इस मूल बीज से भी फसल की पैदावार कर सकेंगे। इसका फायदा यह भी होगा कि किसानों को खेतों में बीजने के लिए बाजार से बोरियों में आलू भरकर लाने की जरूरत नहीं होगी और न ही आलू काटकर खेतों में बीजा जाएगा।

मूल बीज का उपयोग कैसे करें, बीज के फायदे 

आलू के भंडारण की भी जरूरत नहीं है। इससे आलू बीज की ढुलाई का खर्च भी बचेगा। पूर्वोत्तर राज्यों के लिए कुफरी किस्म का कंद बीज 3800 रुपये प्रति क्विंटल जाता था। इसकी ढुलाई पर बहुत ज्यादा खर्च आता था। गौर हो कि अमूमन कंदें तैयार होने के बाद आलू निकाल लिया जाता है। अगर आलू न निकाला जाए तो उसका मूल बीज तैयार होने लगता है। आलू के बीज देखने में मिर्च के बीज की तरह होते हैं। मूल बीज की पौध उगाने के लिए पनीरी तैयार करते हैं, जिसे बाद में ठीक से तैयार क्यारियों में उगाया जाता है। इसमें श्रम अधिक लगता है। बुवाई के लिए करीब 50 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बीज का इस्तेमाल किया जाता है। इसका उपयोग रोग मुक्त बीज उत्पादन के लिए किया जाता है। यह विषाणु मुक्त बीज उत्पादन की तकनीक है। पारंपरिक तरीके से रोपण के लिए उपयोग किए जाने वाले कंदों की लागत बहुत अधिक होती है, जबकि नर्सरी में अगले वर्ष रोपण के लिए कंदों का उत्पादन अपेक्षाकृत बहुत कम होता है। 

अखण्ड भारत

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