काहिरा : दुनिया के कई देश आर्थिक बदहाली से जूझ रहे हैं। इनमें एक नाम मिस्र का भी है। अफ्रीका और अरब दुनिया के बीच खड़े इस देश की करेंसी अब सबसे निचले स्तर पर है। मिस्र के अखबारों में छपने वाले लेख इसके आर्थिक संकट को उजागर कर रहे हैं। महंगाई से त्रस्त जनता अब बाजारों में जाना पसंद नहीं करती। किराने की कीमतें आसमान के बजाय अंतरिक्ष को छू रही हैं। कई लोगों के लिए अंडा अब एक लग्जरी आइटम हो गया है। सपना बन चुका मीट ज्यादातर की थालियों से पूरी तरह गायब ही हो गया है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, देश का मिडिल क्लास वर्ग स्कूल फीस और मेडिकल खर्चों के नीचे दबा हुआ है। काहिरा की 30 वर्षीय कम्युनिकेशन ऑफिसर माई अब्दुलघानी ने कहा, ‘फिलहाल, हमें दूर-दूर तक कुछ नहीं दिख रहा है।’ उनके पति एक डिजाइन इंजीनियर हैं लेकिन जरूरतों को पूरा करन के लिए उन्हें चार नौकरियां करनी पड़ रही हैं। महिला ने कहा कि मैं यह सोचती हूं कि हम अपने बजट पर कैसे जीवित रहेंगे। हर बार जब हम सुपरमार्केट जाते हैं, तो मेरा खून खौलता है।’
मिस्र के संकट को रूस-यूक्रेन युद्ध ने बढ़ावा दिया था जिसने मिडिल ईस्ट के कई देशों को हिलाकर रख दिया है। जब युद्ध शुरू हुआ तो रूसी और यूक्रेन पर्यटक, जो एक समय पर मिस्र के कुल पर्यटकों का एक-तिहाई हिस्सा थे, बड़े पैमाने पर गायब हो गए। इसके अलावा गेहूं की सप्लाई भी बाधित हो गई जिस पर ज्यादातर आबादी निर्भर थी। विदेशी निवेशक भी मिस्र से चले गए और अपने साथ 20 अरब डॉलर भी लिए गए। संकट के समय मुस्लिम देश मिस्र के साथ खाड़ी देश भी नहीं खड़े हैं जो उसके लिए सबसे बड़ा झटका है।
मुश्किल दिनों में अलग-थलग पड़े मिस्र की मदद के लिए भारत आगे आया है। मिस्र में गेहूं की सप्लाई भारत से हो रही है। इतना ही नहीं, मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस की परेड में बतौर मुख्य अतिथि शिरकत करेंगे। उनकी यह भारत यात्रा दिल्ली और काहिरा को और करीब लाएगी। पीएम मोदी के साथ उनकी बातचीत कृषि, शिक्षा और रक्षा क्षेत्र पर केंद्रित होगी।