Crew Movie Review: बॉलीवुड में हीरोइन ओरिएंटेड फिल्मों का दौर चल पड़ा है। ये सच है कि अब नायिका सिर्फ सजावटी गुड़िया नहीं हैं, वे प्यार-रोमांस के साथ एक्शन भी कर सकती हैं, आतंकवादियों से भी भिड़ सकती हैं। पिछली कुछ फिल्मों में हमारी नायिकाएं ये सब करती दिखी हैं और अब निर्देशक राजेश कृष्णन तब्बू, करीना और कृति जैसी ए लिस्टेड एक्ट्रेस के साथ क्रू में पेश हुए हैं, जिसमें ये सधी हुई नायिकाएं न केवल डकैती करती हैं बल्कि आपको हंसाती-गुदगुदाती भी हैं।
Crew Movie Review: फिल्म ‘क्रू’ की कहानी
Crew Movie Review कहानी की शुरुआत मजेदार ढंग से होती है, जिसके केंद्र में हैं तीन एयर होस्टेस। गीता सेठी (तब्बू), जैस्मीन कोहली (करीना कपूर) और दिव्या राणा (कृति सेनन). ये तीनों विजय वालिया (सास्वता चटर्जी) की कोहिनूर एयरलाइंस में काम करती हैं। इन तीनों को एयरलाइंस के 4000 कर्मचारियों समेत 6 महीने से वेतन नहीं दिया गया है। परिवार और प्रॉपर्टी के डिस्प्यूट के बाद गीता अपने पति अरुण (कपिल शर्मा) के साथ आर्थिक मुश्किलों से जूझती हुई एक मिडल क्लास जिंदगी बिता रही है, जबकि उसकी ख्वाहिश अपना रेस्टॉरेंट खोलने की है।
Crew Movie Review: ‘क्रू’ का रिव्यू
माता-पिता की तलाक के बाद जैस्मीन अपने नाना के साथ रह रही है। उसका सपना है कि एक दिन वो अपनी कंपनी खोलकर उसकी सीईओ बने, वहीं दिव्या भी एक समय हरियाणा की टॉपर रही है और पायलट बनने का ख्वाब देखती रही है, मगर अब वह मात्र एयर होस्टेस बन कर रह गई है। हालांकि दिव्या ने परिवार को तो यही झूठ बोल रखा है कि वह पायलट है। सारांश ये है कि ये तीनों ही पैसों की तंगी से गुजर रही हैं।
कहानी में ट्विस्ट तब आता है,जब एक दिन उनके एक सीनियर राजवंशी (रमाकांत दायमा) की मौत फ्लाइट में ही हो जाती है और ऑन ड्यूटी इन तीनों को उसकी लाश पर सोने के बिस्कुट मिलते हैं, जिन्हें देखकर वे ललचा जाती हैं, मगर उस वक्त उनका ईमान उन्हें वे बिस्कुट चुराने से रोक लेता है। आगे चल कर उन्हें जब पता चलता है कि उनकी एयरलाइंस दिवालिया हो गई है और विजय वालिया विदेश भाग गया है, तब वे अपने सपनों को पूरा करने के लिए सोने की स्मगलिंग में शामिल अपने एचआर मित्तल (राजेश शर्मा) के साथ मिलकर पैसा बनाने के लिए तैयार हो जाती हैं। वे इस बात से अंजान हैं कि दिव्या राणा का पुराना परिचित और कस्टम ऑफिसर जयवीर (दिलजीत दोसांझ) और उसकी टीम इन तीनों पर नजर रखे हुए है।
Crew Movie Review: ‘क्रू’ में क्या मजबूत और क्या कमजोर
Crew Movie Review निर्देशक राजेश कृष्णन कहानी को पास्ट और प्रेजेंट के दृश्यों के साथ रोमांचक ढंग से शुरू करते हैं। फिल्म का मूड काफी कॉमिक है और यही वजह है कि टेंशन वाले दृश्यों में मनोरंजन कम नहीं होता। शुरू में कहानी में नयापन भी लगता है। फिल्म का एक प्लस पॉइंट ये भी है कि दूसरी हीरोइन ओरिएंटेड फिल्मों की तरह यह नायिका प्रधान फिल्म किसी फेमिनिस्ट मुद्दे का झंडा नहीं गाड़ती बल्कि मनोरंजन का रास्ता अपनाती है। इंटरवल तक कहानी सरपट भागती है, मगर इंटरवल के बाद ये काफी कन्वीनियंट हो जाती है।
सेकंड हाफ में स्क्रीनप्ले की खामियां भी उजागर होने लगती हैं। तीनों नायिकाओं द्वारा डकैती वाला प्लॉट बचकाना लगता है और उस पर जब ये तीनों देश का सोना वापिस लेने का संकल्प लेती हैं, तो कहानी के मिजाज गड़बड़ा जाता है। हालांकि ‘टाइटैनिक ही देख ले, अमीर सारे बोत में बैठ कर निकल गए और गरीब बेचारे डूब गए’ जैसे कई वनलाइनर्स चुटीले हैं। सेकंड हाफ में फिल्म टुकड़ों में मनोरंजन करती है। 2 घंटे 4 मिनट के रन टाइम को नियंत्रित करने के लिए कुछ दृश्यों को जल्दबाजी में समेटा गया है।
Crew Movie Review: तकनीकी और संगीत पक्ष की बात करें, तो जॉन स्टीवर्ट एडरी का बैकग्राउंड स्कोर शानदार है। घाघरा, चोली के पीछे क्या है और सोना कितना सोना है, जैसे गानों को रीक्रिएट किया गया है जबकि दिलजीत दोसांझ और बादशाह का गाया नैना गीत अच्छा बन पड़ा है। फिल्म में कॉस्टयूम डिपार्टमेंट की तारीफ करनी होगी। उन्होंने तीनों हीरोइनों को काफी स्टाइलिश अंदाज में पेश किया है। अनुज राकेश धवन की सिनेमैटोग्राफी आकर्षक है।
‘क्रू’ के कलाकार
Crew Movie Review: अभिनय की बात की जाए, तो तीनों जानी-मानी अभिनेत्रियों का अभिनय फिल्म की मजबूत रीढ़ है। तब्बू अपने गीता सेठी के रफ एंड टफ रोल में खूब जंची हैं। अपशब्दों और वनलाइनर्स से वे खूब हंसाती हैं और साथ ही जिम्मेदारियों और हसरतों को भी दर्शाना नहीं भूलतीं, वहीं जैस्मीन के रोल में करीना का अभिनय लाजवाब है। नैतिकता से परे अपने सपनों के पीछे भागने वाली जैस्मिन के चरित्र को उन्होंने पूरी निडरता से जिया है और यही वजह है कि दर्शक उनके किरदार के प्यार में पड़ जाता है।
Crew Movie Review: तब्बू और करीना जैसी दो दिग्गज अभिनेत्रियों के बीच कृति ने खुद को धूमिल नहीं पड़ने दिया है। उनकी परफॉर्मेंस भी दमदार है। कपिल शर्मा थोड़े से स्क्रीन स्पेस में याद रह जाते हैं, मगर फिल्म में उनका ज्यादा इस्तेमाल किया जाना चाहिए था। दिलजीत दोसांझ ने अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है, पर शाश्वता चटर्जी जैसे समर्थ अभिनेता को जाया कर दिया गया है। कुलभूषण खरबंदा और राजेश शर्मा अपने किरदारों में जमे हैं। सहयोगी कास्ट ठीक-ठाक है।