अखण्ड भारत टीम/नई दिल्ली :- चीनी राष्ट्रपति कॉमन प्रॉस्पेरिटी प्रोग्राम के जरिए देश में मौजूद आर्थिक असमानता को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए हाल ही में चीन ने बड़ी कंपनियों पर कई आर्थिक प्रतिबंध भी लगाए हैं और कार्यवाही भी की है।
चीन का कहना है कि ज्यादा आय वाले लोगों और संस्थानों को प्रेरित कर रहा है कि वह समाज से कमा रहे हैं, तो उसका कुछ अंश वापस भी लौटाए। इससे समाज में अमीर-गरीब की खाई कम होगी और आय/संपत्ति का बंटवारा समाज के सभी तबकों में होगा। चीन इसे एक समाजवादी विचार के तौर पर प्रमोट कर रहा है, जिसका लक्ष्य संपत्ति और पैसों को ज्यादा से ज्यादा लोगों के बीच बांटना है।
दरअसल, सांस्कृतिक क्रांति के बाद चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए बड़े-बड़े बदलाव किए थे। इन बदलावों का फायदा चीन की अर्थव्यवस्था ने रफ्तार पकड़ी, लेकिन साथ ही साथ अमीर-गरीब के बीच की खाई भी बढ़ती गई। संपत्ति और आय का ये अंतर खासतौर से शहरी और ग्रामीण इलाकों में ज्यादा था। इस वजह से चीन का सामाजिक तानाबाना गड़बड़ होने लगा और चीन को दोबारा इस नीति पर काम करना शुरू करना पड़ा।
शहीद भगत सिंह कॉलेज, दिल्ली यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. ऋत्युषा मणि तिवारी के मुताबिक, चीन इस प्रोग्राम को पूरा करने के लिए 3 तरह के कदम उठा रहा है। जिसमें पहला, चीन अमीर लोगों पर ज्यादा टैक्स लगाकर उस पैसे का बंटवारा मध्य और निम्न वर्ग की आय को बढ़ाने के लिए कर रहा है। दूसरा, बड़ी और ज्यादा कमाई वाली कंपनियों को कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी के तहत लोगों और संस्थानों को प्रेरित कर रहा है कि वे ज्यादा से ज्यादा डोनेशन और चैरिटी करें। तीसरा, नियम-कानून बनाकर इनकम के डिस्ट्रीब्यूशन को कंट्रोल कर रहा है।
डॉ. मणि तिवारी कहती हैं कि चीन अगर इस प्रोग्राम के तहत प्रॉपर्टी और इन्हेरिटेंस टैक्स को लागू करता है, तो इसका पूरी दुनिया पर असर पड़ेगा। भारत जैसे विकासशील देशों में पर चीन के इस कदम का बहुत ज्यादा असर नहीं पडे़गा। भारत का चीन को एक्सपोर्ट बढ़ेगा क्योंकि चीन चाहता है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी विकसित हो। इसके लिए उसे ग्रामीण इलाकों में लोगों की आय बढ़ानी होगी जिससे कि कन्जम्पशन बढ़े। अगर ऐसा होता है तो प्रोडक्ट्स की डिमांड बढ़ेगी इससे रीजनल ट्रेड बढ़ेगा।