डेस्क: चीन ने सऊदी अरब में हुए यूक्रेन शांति सम्मेलन का स्वागत किया है। वहीं, रूस ने इसे पहले से ही फेल होने के लिए शापित करार दिया है। दोनों देशों के बीच यूक्रेन को लेकर ऐसी बयानबाजी आपसी संबंधों में दूरियों का संकेत है। कुछ दिनों पहले ही चीन ने अपने 5 नागरिकों को रूस में एंट्री देने से इनकार करने पर पुतिन के अधिकारियों की आलोचना की थी। इसके लिए चीन ने जिन शब्दों का इस्तेमाल किया था, उसे बीजिंग आम तौर पर पश्चिमी देशों के खिलाफ प्रयोग करता है। ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि पिछले कुछ दिनों से चीन और रूस में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है।
चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि सऊदी अरब के जेद्दा में हुई दो दिवसीय बैठक ने रूस-यूक्रेन संघर्ष का शांतिपूर्ण समाधान खोजने पर अंतरराष्ट्रीय सहमति को मजबूत करने में मदद की। इस वार्ता में यूक्रेन, अमेरिका, यूरोपीय देशों और ब्रिक्स देशों के समूह सहित 140 से अधिक देश शामिल हुए। हालांकि, इस बैठक में रूस शामिल नहीं हुआ, लेकिन उसने कहा कि वह बाहर से नजर बनाए हुए है। रूसी सरकारी मीडिया के अनुसार, क्रेमलिन के अधिकारियों ने कहा कि रूस को वार्ता के लिए आमंत्रित नहीं किया गया है, लेकिन वह उन पर नजर रख रहा है।
चीन के शामिल होने के यूक्रेन ने बताया जीत
इस शांति सम्मेलन से भविष्य में और अधिक चर्चा आयोजित करने पर सहमति के अलावा और कुछ नहीं निकला। वहीं, यूक्रेन ने इस बैठक में चीन की उपस्थिति को एक राजनयिक जीत के रूप मे स्वीकार किया। बीजिंग ने जून में डेनमार्क में पिछले दौर की वार्ता से दूरी बना ली थी, लेकिन सऊदी अरब के न्योते को नकार नहीं सका। हाल के वर्षों में चीन और सऊदी अरब के संबंधों में जबरदस्त प्रगति देखने को मिली है। चीन ने दशकों से दुश्मनी निभा रहे ईरान और सऊदी अरब के बीच दोस्ती भी कराई है।
चीन ने यूक्रेन शांति सम्मेलन का स्वागत किया
जेद्दा में हुए यूक्रेन शांति सम्मेलन के दौरान चीन को प्रमुख स्थान दिया गया। सऊदी अरब की सरकारी मीडिया में प्रकाशित तस्वीरों में सऊदी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मुसैद बिन मोहम्मद अल-आइबा अपने अमेरिकी समकक्ष, जेक सुलिवन और यूरेशियाई मामलों पर चीनी विशेष प्रतिनिधि ली हुई के बीच बैठे थे। चीन के विदेश मंत्रालय ने एक लिखित बयान में बताया कि ली ने यूक्रेन संकट के राजनीतिक समाधान पर सभी पक्षों के साथ व्यापक चर्चा की। उन्होंने सभी पक्षों की राय और प्रस्तावों को सुना और अंतरराष्ट्रीय सहमति को और मजबूत किया।