कथा सुनेंगे तो ज्ञान पाएंगे, अन्यथा निगुरे कहलाएंगे
श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन सृष्टि कल्याण सहित क्षेत्र में सुख, समृद्धि, शान्ति के लिए करवाया जा रहा है
कँवर ठाकुर (कफोटा):- उपमंडल के कफोटा कस्बे में आशुतोष शिव मंदिर के सौजन्य से 7 दिवसीय भागवत कथा का आयोजन सृष्टि कल्याण सहित क्षेत्र में सुख, समृद्धि, शान्ति के लिए करवाया जा रहा है भागवत कथा में पहले दिन के समापन पर्व पर भाजपा मंडल जिला उपाध्यक्ष कुलदीप राणा, भाजपा प्रदेश कार्यकारणी के सदस्य व जिला औद्योगिक प्रकोष्ठ के उपाध्यक्ष जगदीश तोमर, भाजपा मंडल शिलाई उपाध्यक्ष इंदर ठाकुर ने बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की है। इस दौरान व्यास प्रकाशानंद पंडाल में बैठे लोगो को ज्ञान गंगा का सार समझाते हुए कहते है कि ऐसा व्रत अथवा तप कहिए जिसके करने से थोड़े ही समय में पुण्य प्राप्त हो तथा मनवांछित फल भी मिले। हमारी प्रबल इच्छा है कि हम ऐसी कथा सुनें, अब मैं उस श्रेष्ठ व्रत को आपसे कहूँगा जिसे नारदजी के पूछने पर लक्ष्मीनारायण भगवान ने उन्हें बताया था।
एक समय देवर्षि नारदजी दूसरों के हित की इच्छा से सभी लोकों में घूमते हुए मृत्युलोक में आ पहुँचे, यहाँ अनेक योनियों में जन्मे प्रायः सभी मनुष्यों को अपने कर्मों के अनुसार कई दुखों से पीड़ित देखकर उन्होंने विचार किया कि किस यत्न के करने से प्राणियों के दुःखों का नाश होगा। ऐसा मन में विचार कर श्री नारद विष्णुलोक गए, वहाँ श्वेतवर्ण और चार भुजाओं वाले देवों के ईश नारायण को, जिनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म थे तथा वरमाला पहने हुए थे, देखकर स्तुति करने लगे। नारदजी ने कहा- ‘हे भगवन! आप अत्यंत शक्ति से संपन्न हैं, मन तथा वाणी भी आपको नहीं पा सकती, आपका आदि-मध्य-अन्त भी नहीं हैं। आप निर्गुण स्वरूप सृष्टि के कारण भक्तों के दुखों को नष्ट करने वाले हो।
नारदजी से इस प्रकार की स्तुति सुनकर विष्णु बोले- ‘हे मुनिश्रेष्ठ! आपके मन में क्या है। आपका किस काम के लिए यहाँ आगमन हुआ है? निःसंकोच कहें।’ तब नारदमुनि ने कहा- ‘मृत्युलोक में सब मनुष्य, जो अनेक योनियों में पैदा हुए हैं, अपने-अपने कर्मों द्वारा अनेक प्रकार के दुःखों से पीड़ित हैं। हे नाथ! यदि आप मुझ पर दया रखते हैं तो बताइए उन मनुष्यों के सब दुःख थोड़े से ही प्रयत्न से कैसे दूर हो सकते हैं।’
विष्णु भगवान ने कहा- जिस व्रत के करने से मनुष्य मोह से छूट जाता है, वह व्रत मैं तुमसे कहना चाहता हूँ। बहुत पुण्य देने वाला, स्वर्ग तथा मृत्यु दोनों में दुर्लभ, एक उत्तम व्रत है जो आज मैं प्रेमवश होकर तुमसे कहता हूँ।
श्री सत्यनारायण भगवान का यह व्रत विधि-विधानपूर्वक संपन्न करके मनुष्य इस धरती पर सुख भोगकर, मरने पर मोक्ष को प्राप्त होता है।’ श्री विष्णु भगवान के यह वचन सुनकर नारद मुनि बोले- ‘हे भगवान उस व्रत का फल क्या है? क्या विधान है? इससे पूर्व यह व्रत किसने किया है और किस दिन यह व्रत करना चाहिए। कृपया मुझे विस्तार से बताएँ।’
श्री विष्णु ने कहा- ‘हे नारद! दुःख-शोक आदि दूर करने वाला यह व्रत सब स्थानों पर विजयी करने वाला है। भक्ति और श्रद्धा के साथ किसी भी दिन मनुष्य श्री सत्यनारायण भगवान की संध्या के समय ब्राह्मणों और बंधुओं के साथ धर्मपरायण होकर पूजा करे, भक्तिभाव से नैवेद्य, केले का फल, शहद, घी, शकर अथवा गुड़, दूध और गेहूँ का आटा सवाया लें (गेहूँ के अभाव में साठी का चूर्ण भी ले सकते हैं)।
सबको भक्तिभाव से भगवान को अर्पण करें, बंधु-बांधवों सहित ब्राह्मणों को भोजन करवाएं, इसके पश्चात स्वयं भोजन करें। रात्रि में नृत्य-कर्तन, भजन का आयोजन कर श्री सत्यनारायण भगवान का स्मरण करता हुआ समय व्यतीत करें। कलिकाल में मृत्युलोक में यही एक लघु उपाय है, जिससे अल्प समय और अल्प धन में महान पुण्य प्राप्त हो सकता है। कथा के अंत मे विधिवत पूजा अर्जना के साथ आरती की गई तथा समूचे क्षेत्र के लिए भंडारे का आयोजन किया गया क्षेत्र के सैकड़ों लोगों ने भागवत कथा में पहुंचकर प्रशाद ग्रहण कर सौभाग्य प्राप्त किया है।