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शिलाई क्षेत्र के धारवा गांव में भातियोजे के दिन निभाई जाती है अनूठी परम्परा

By Sandhya Kashyap

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शिलाई (कंवर ठाकुर) : जिला सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र की विशिष्ट संस्कृति के तहत सदियों से मनाए जाने वाले माघी त्यौहार के उपलक्ष पर भातियोजे के दिन करोड़ों के बकरे काटे जाते है। शिलाई क्षेत्र में माघी पर्व का जश्न शुरू हो गया है। सप्ताह भर से बकरों के काटने का सिलसिला शुरू हो गया है। भातियोजे से पहले बोश्ते के दिन सभी घरों में पहाड़ी व्यंजन उलौले, तेलपक्की, बडोली, खिंडा बनाया जाता है तथा पढाई व रोजगार के लिए क्षेत्र से बाहर रह रहें सभी लोग इस दिन घर पहुंचता है। 

धारवा गांव के ढ़ीमेदार चमेल सिंह ठाकुर ने बताया कि उपमंडल शिलाई के धारवा गांव में माघी त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। भातियोजे के दिन बकरे काटने के बाद हर घर से एक-एक सदस्य इकट्ठा हो कर हर घर में जाकर खानपान करने की अनूठी परंपरा को निभाता है।  जो सदियों से बनी हुई है। थबऊ खश की इस परंपरा और पौराणिक नियम का पूरा भाईचारा पूर्ण सम्मान करता हैं। 

इस परंपरा का उद्देश्य पूरे वर्ष में आपसी मनमुटाव को प्यार की भावना में बदलना है, जिस घर से कोई व्यक्ति इस खुशी के पर्व पर गांव के साथ शामिल नहीं होता, उसको पूरे गांव द्वारा दंड दिया जाता है, या गांव के लोग भी उस व्यक्ति के घर नहीं जाते है।

क्षेत्र में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। लगभग प्रत्येक परिवार में भातियोजे के दिन बकरे काटे जाते है तथा मीट को घरों की छत पर सुखाया जाता है ताकि बकरे का मीट पूरे सर्दी के मौसम मे चल सके।  कुछ लोग बकरे खरीदकर काटते हैं जबकि कुछ लोग स्वयं बकरों को माघी के लिए विशेष रूप से पालते हैं। 

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माघी पर्व पर बनने वाले पकवान और काटे गए बकरे का हिस्सा बेटी, बहन आदि को भी रखा जाता है। इस दिन महाकाली की भी विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।

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