Zerodha के सह-संस्थापक Nithin Kamath, Nikhil Kamath और CTO कैलाश नाध ने हाल ही में अपने बेंगलुरु ऑफिस में एक पॉडकास्ट के दौरान कंपनी और भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा की। उन्होंने इस बातचीत में regulatory pressures का असर और entrepreneurship के भविष्य को लेकर अपनी चिंताएं साझा कीं। साथ ही, उन्होंने उम्मीद जताई कि सरकार, नियामक और स्टार्टअप्स के बीच बेहतर तालमेल और सहयोग भविष्य में संभव होगा।
Nikhil Kamath ने भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम में फैले डर और अनिश्चितता के बारे में विस्तार से बात की। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि entrepreneurs, regulators और सरकार के बीच सहयोग की सख्त जरूरत है। उन्होंने कहा, “हम उन नियामकों के अधीन हैं जिनसे हमारा कोई सीधा संवाद या प्रभाव नहीं है, लेकिन वे एक दिन में हमारी आय का 50% कम कर सकते हैं या हमें बंद करवा सकते हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि यह स्थिति स्टार्टअप्स की वृद्धि और innovation के लिए हानिकारक हो सकती है।
हालांकि Nikhil Kamath ने माना कि भारतीय नियामक (regulators) प्रणाली को मजबूती प्रदान करते हैं, लेकिन उन्होंने अत्यधिक नियमों के नकारात्मक प्रभावों पर भी जोर दिया। उन्होंने इसे एक उदाहरण से समझाया, “50 बच्चों के एक कक्षा में जहाँ शिक्षक नियम बनाते हैं और बच्चों को मनमर्जी से डांटते हैं, क्या वहां इन बच्चों में से नवाचार की कोई संभावना हो सकती है? शायद नहीं।” उनके अनुसार, जब उद्यमी हमेशा किसी सजा या दंड के डर में जी रहे होते हैं, तो उनसे उम्मीद करना मुश्किल होता है कि वे खुलकर नए विचारों पर काम करें।
नितिन कामथ ने भी इस पर अपनी सहमति जताई और बताया कि ज़ेरोधा की आय में वृद्धि नए नियमों के कारण धीमी हो सकती है। उन्होंने सेबी (SEBI) के ‘True-to-Label’ सर्कुलर का हवाला देते हुए कहा कि यह नियम उनके वित्तीय प्रदर्शन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। नितिन ने कहा, “एक ब्रोकिंग फर्म चलाना मुश्किल काम है,” और नियमों की कठिनाइयों का सामना करते हुए भी इस उद्योग में टिके रहना चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है।
स्टार्टअप्स के लिए भारतीय बाजार में काम करना कोई आसान बात नहीं है। एक तरफ जहां उन्हें अपने व्यवसाय को बढ़ाने और स्थायित्व बनाए रखने की जरूरत होती है, वहीं दूसरी ओर विनियामक नियम और सरकारी निर्णय उनके रास्ते में बड़ी चुनौतियां खड़ी कर सकते हैं। स्टार्टअप्स के सामने सबसे बड़ा संकट यह है कि उनके पास नियामक एजेंसियों के साथ कोई संवाद का जरिया नहीं होता। ऐसे में अचानक लागू हुए नियम या फैसले पूरी कंपनी को प्रभावित कर सकते हैं। निखिल ने इस बात पर भी चिंता जताई कि इस प्रकार के वातावरण में इनोवेशन के लिए कोई जगह नहीं रह जाती।