हालिया इंटरव्यू में महिला सशक्तिकरण, काम और अपने तलाक पर बेबाकी से बोली हैं, बॉलिवुड ऐक्ट्रेस कीर्ति कुल्हारी जल्द ही वेब सीरीज ह्यूमन में नजर आने वाली हैं
कीर्ति कुल्हारी इंडस्ट्री की उन अभिनेत्रियों में से हैं, जिन्होंने फिल्मों और सीरीज से महिला प्रधान किरदारों पर ही नहीं मुद्दों पर भी बात की है। ‘पिंक’, ‘इंदु सरकार’, ‘फॉर मोर शॉटस प्लीज’, ‘मिशन मंगल’ जैसे तमाम प्रॉजेक्ट्स में अपने अभिनय को साबित कर चुकी कीर्ति इन दिनों चर्चा में हैं अपने नए सीरीज ‘ह्यूमन‘ को लेकर, जो मानवीय शरीर पर होने वाले एक्सपेरिमेंट पर आधारित है। इस विशेष बातचीत में वे अपनी सीरीज, अपने मानवीय पहलू, बूब और लिप जॉब, पैट्रियाकी, महिला सशक्तिकरण और अपनी तलाक पर बेबाक होकर बात करती हैं
सच तो यह है कि मेरे लिए डॉक्टरों की दुनिया अनजान नहीं है। मेरी दीदी 15 सालों से डॉक्टर हैं। मेरे जीजू भी डॉक्टर हैं और ये दोनों आर्मी में कार्यरत हैं, तो मुझे जब इस रोल का ऑफर मिला, तो मैंने खुश होकर दीदी-जीजाजी को कहा, मैं आप लोगों का रोल प्ले करने जा रही हूं। मैंने अपने सायरा के रोल को समझने के लिए दीदी से काफी सवाल-जवाब भी किए। मैं सीरीज में कार्डियक सर्जन बनी हूं, तो मैंने उनकी साइकी, उनके मरीजों से उनका रिश्ता जैसी तमाम बातों की पड़ताल की। यह सीरीज ह्यूमन ड्रग ट्रायल पर आधारित है, तो मैंने इस पहलू पर भी काफी रिसर्च की। इसमें कई हार्ड हिटिंग मुद्दे देखने को मिलेंगे, जिसे मैंने को आप राजी नहीं होंगे, मगर दुर्भाग्य से ऐसी चीजें होती हैं।
खुद को बहुत ज्यादा ह्यूमन मानती हूं। मैं ये नहीं कहती कि मुझमें कमियां नहीं हैं, मगर मैं लगातार बेहतर इंसान होने की दिशा में काम करती रहती हूं। मुझे लगता है कि एक इंसान के रूप में आप में कंपैशन, सहानुभूति और दया होने चाहिए। पिछले तीन सालों से मैं 7-8 ऐसे ऑर्गनाइजेशन से जुड़ी हूं, जो जानवरों और इंसानों के हित में काम करते हैं, जिसमें स्पेशल चिल्ड्रन स्कूल, स्लम्स के बच्चे, सिगनल स्कूल जैसे कई एनजीओ हैं। रक्षा बंधन के समय की बात है। मैं अपनी कार से जा रही थी कि मेरी कार के नीचे एक बिल्ली आ गई, वो बुरी तरह घायल हो गई। मैं उसे छोड़कर नहीं जा पाई। मेरा दिल बैठ गया। किसी तरह कार ट्रैफिक में पार्क करके मैं उस बिल्ली के पास गई। मैंने जानवरों की संस्था ‘इन डिफेंस ऑफ एनिमल्स’ को कॉल किया। मैं तुरंत बिल्ली को लेकर उनके सेंटर गई। बिल्ली की हालत काफी खराब थी, मगर उस संस्था ने उसक मुफ्त में इलाज किया। मैं रोजाना बिल्ली का हाल पूछती थी, मगर आखिरकार तीन दिन में बिल्ली ने दम तोड़ दिया। मैं बहुत रोई थी उस दिन।
पहले मैं इस बारे में अलग तरह से सोचती थी, मगर फिर मुझे लगा कि अगर किसी टेक्नॉलजी से आप अपनी खूबसूरती को संवार सकते हैं और वो आपको खुशी देती है, तो क्यों नहीं? आप अगर ये सोच कर इस तरह की प्रक्रिया से गुजरना चाहते हैं कि आप में कोई कमी है, तो फिर आप बूब जॉब करवा लो या लिप जॉब? आपको संतुष्टि नहीं मिलेगी। ये तो अंधा कुआं हैं। आपको सेल्फ वर्थ होनी चाहिए। आप अगर ऐसा कुछ करना चाहती हैं, तो बेशक कराएं, मगर आपको अपने अंदर की खूबसूरती पर भी काम करना होगा। जहां तक मेरी अपनी बात है, तो आज से 8-9 साल पहले मैं अपने डर्मेटोलॉजिस्ट के पास गयी और मैंने बोटॉक्स करने की बात कही थी। उन्होंने कहा, आपको जरूरत तो नहीं, मगर करवाना है, तो करवा लीजिए। मैंने दो बार बोटॉक्स का ट्रीटमेंट किया। वो एक ट्रीटमेंट महज दो महीने चलता है। फिर मुझे अहसास हुआ कि मुझे ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए। ये 2014 की बात है, उसके बाद मैंने कभी फेशियल तक नहीं करवाया। हां, हाल ही में मुझे आइब्रोज को घनी करने की माइक्रोब्लेडिंग के बारे में पता चला है। मैं अपनी आइब्रोज को घना करने के लिए ये प्रक्रिया अपना सकती हूं, मगर मैंने नहीं भी किया, तो भी मैं खुद को लेकर बहुत संतुष्ट हूं। मुझे नहीं लगता कि मैं कभी किसी तरह से ब्यूटी लिप या बूब सर्जरी का हिस्सा बनूंगी।
हिलाओं को आज जितनी भी समस्याओं से गुजना पड़ता है, उसका असल रूट पैट्रियाकी है। ये कंडीशनिंग हमें बचपन से दी जाती है, तो जब से इस मुद्दे को लेकर मुझ में समझ पनपी है, मैं अपनी मम्मी या आस-पास की औरतों को जताती रहती हूं कि तुम पैटियाकी की कंडीशन का शिकार हो। मेरे लिए एम्पॉवरमेंट लफ्ज बहुत मायने रखता है। मेरे लिए सशक्तिकरण वो है, जब आप अपनी जिंदगी की डोर अपने हाथों में लेकर अपनी मर्जी से चल सकें। बहुत पैसे कमाने या किसी कंपनी के सीईओ बनने से आप एम्पावर नहीं होंगे। असल सशक्तिकरण वो है, जब आप अपनी चॉइस के आधार पर अपनी जिंदगी जी सकें। पैट्रियाकी के कारण हमें वो डोर नहीं दी जाती। जब से मैंने इस मुद्दे को समझना शुरू किया, तो मुझे ये बातें बहुत बेवकूफी की लगने लगी कि घर के तमाम बड़े फैसले परिवार का मुखिया लेगा। मैं तो अपनी दीदी के बच्चे हों या किसी और के कहती हूं कि उन्हें उनके फैसले करने की इजाजत दें।
मेरे केस में ऐसा नहीं था कि लड़ाई नहीं थी या ये कोई छोटा-मोटा फैसला था। जब आप किसी से शादी करने का फैसला करते हैं, तो पूरा परिवार यों खुश होता है, मानों उनकी शादी हो रही हो, मगर फिर जब आप ही कहते हो कि बात नहीं जम रही और मुझे शादी तोड़नी है, तो खूब ड्रामा भी होता है। जाहिर है हर कोई सोचता है कि यह आपकी समस्या नहीं है, उनकी भी है और आपके साथ उन्हें भी झेलना पड़ेगा। यह फैसला आसान नहीं था, मगर बीते सालों में एक औरत के रूप में मेरा जो सशक्तिकरण हुआ है, उसी के कारण मुझे यह ताकत मिली कि मैं अपने लिए फैसला ले पाऊं। मैं दूसरों को संतुष्ट करने के लिए शादी में नहीं बनी रह सकती। बहुत सारे लोग समाज के डर से शादी में बंधे रहते हैं। मैं उसमें विश्वास नहीं करती। मैं जानती हूं कि सबके लिए आसान नहीं होता ये फैसला। ये निर्णय मेरे लिए भी रातों-रात नहीं हुआ। मगर ये जरूर कह सकती हूं कि वो फैसला मेरे लिए सही साबित हुआ, क्योंकि उसके बाद मैं मानसिक शांति हासिल कर पाई। कई लोग इसे स्वार्थी रवैया कहेंगे, मगर मैं अपने लिए जीती हूं। मैं ही अगर अंदर से खुश नहीं हूं, तो दूसरों को क्या खुशी दे पाऊंगी? मुझे समाज के दिखावे से चिढ़ होती है। ये परंपराएं बोझ बन गई हैं।