"मत्स्य पुराण"

इसलिए क्षेष्ठ है मत्स्य पुराण, मत्स्य अवतार भगवान विष्णु के दस अवतारों में सर्वप्रथम अवतार है।।

 सृष्टि के प्रारंभ की बात है, हयग्रीव असुर शास्त्रों को चुराकर पाताल में चला गया। तब भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार धारण किया ।।

मत्स्य पुराण की श्लोक संख्या चौदह हजार है। मत्स्य पुराण के अंदर 299 अध्याय उपनिबंद्ध है।।

मत्स्य पुराण के अन्दर भगवान विष्णु के मत्स्यवतार - कथा, मनु - मत्स्य - संवाद, सृष्टि- वर्णन, तत्व - मीमांसा, मन्वंतर के साथ पितृ वंश का विस्तृत  वर्णन मिलता है ।।

मत्स्य पुराण तदन्नतर-प्रयाग-महिमा, भूगोल-खगोल-वर्णन, ज्यौतिषचक्र, आपके गौत्र, वंश की विस्तृत जानकारी प्रदान करता है।।

मत्स्य पुराण को पढ़ने वाली पुण्य आत्मा के भाग्य का उदय होना निश्चित है। मत्स्य पुराण केवल सुनने मात्र से भी आत्म कल्याण का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा।।

मत्स्य पुराण सनातन धर्म के 18 पुराणों में प्रथम पुराण है। यह पुराण भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार से सम्बन्धित है।।

 मत्स्य पुराण मानव जीवन को सीधा भगवान से जोड़ता है, भगवान विष्णु ने मत्स्यावतार धारण करने के बाद वेदों का उद्धार किया है। इसलिए आमजन के लिए अमूल्य धरोहर है।।

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