उत्तराखंड में एक साल के भीतर 12 बाघों की जान चली गई है। ये आंकड़ा हैरान करने वाला है। जहां एक ओर बाघों के संरक्षण को लेकर प्रयास हो रहें हैं वहीं उत्तराखंड में 12 बाघों की मौत वन विभाग पर कई सवाल खड़े करता है।
सेंट्रल तराई में कई मौतें
उत्तराखंड में बाघों की सबसे अधिक मौतें कुमाऊं के सेंट्रल तराई क्षेत्र में हुई हैं। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार, देशभर में इस साल बीते पांच महीने में कुल 76 बाघों की मौत हुई है। इनमें 12 बाघ केवल उत्तराखंड में मारे गए। उत्तराखंड में इस साल बाघ की पहली मौत का मामला जनवरी में कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में सामने आया था। उसके बाद फरवरी मेें तीन बाघ नैनीताल और रामनगर में मृत पाए गए। फिर मार्च में दो बाघ चकराता रेंज हल्द्वानी और रामनगर डिविजन में मारे गए।
अप्रैल में कॉर्बेट की ढेला रेंज में एक बाघ मृत पाया गया। मई में दो बाघ कालागढ़ डिविजन और कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में मारे गए, जबकि तीन बाघों की मौत का आंकड़ा अभी तक वेबसाइट पर अपडेट नहीं किया गया है। बाघों की मौत के कारण अलग-अलग हैं। वर्ष 2022 में 12 महीने में नौ बाघों की मौत दर्ज की गई थी।
वर्ष 2001 से मई 2023 तक उत्तराखंड में मृत बाघों के आंकड़े
शिकार हुए- 06
दुर्घटनाओं में – 16
जंगल की आग में – 02
मानव जीवन के लिए खतरा बने – 04
आपसी संघर्ष में – 37
स्वाभाविक मौतें – 85
सड़क दुर्घटना में – 01
सांप के काटने पर – 01
जाल में फंसकर- 01
मृत्यु का कारण पता नहीं- 28
कुल मारे गए बाघ – 181
वहीं अब एक साल में ही 12 बाघों की मौत का मामला सामने आने के बाद मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक डॉ. समीर सिन्हा ने मुख्य वन संरक्षक कुमाऊं को विस्तृत जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है।