सेना की मदद से बचाव अभियान चलाया गया और सभी 10 पर्यटकों को बचाया गया था
सोलन: प्रदेश के सोलन जिले के परवाणू के टिंबर ट्रेल रिसॉर्ट(टीटीआर) में 30 साल बाद फिर केबल तार ट्रॉली बीच मझधार में ही फंस गई। इससे पहले 14 अक्तूबर, 1992 को भी केबल कार ट्रॉली फंस गई थी। उस समय ट्रॉली में 11 लोग सवार थे। इनमें 10 सैलानी और एक ऑपरेटर था। बीच में अचानक झटका लगने से केबल की रस्सी टूट गई थी और यह दूसरी रस्सी में फंस गई थी। ऑपरेटर ने ट्रॉली से छलांग लगा दी और कई मीटर गहरी खाई गिरकर उसकी मौत हो गई थी। सेना की मदद से बचाव अभियान चलाया गया और सभी 10 पर्यटकों को बचाया गया था। केबल कार में फंसे लोगों को बचाने के लिए मेजर इवान जोसेफ क्रेस्टो को एक मुश्किल बचाव अभियान के लिए चुना गया था। वह स्काई डाइवर भी थे। उनके साथ फर्स्ट पैरा के तत्कालीन कमांडिंग ऑफिसर कर्नल पीसी भारद्वाज और रिटायर हवलदार कृष्ण कुमार, पायलट कैप्टन सुभाष चंद्र और सेवानिवृत्त कैप्टन परितोष उपाध्याय ऑपरेशन में शामिल थे। पंचकूला के चंडी मंदिर स्थित वेस्टर्न कमांड से भी बचाव के लिए टीम को भेजा गया था, जिन्होंने एयरफोर्स के जवानों के साथ लोगों को बचाव करने में बड़ी भूमिका निभाई थी।
मेजर क्रेस्टो ने भी ट्रॉली में ही गुजारी थी रात, मिला था कीर्ति चक्र
केबल कार में फंसे लोगों को बचाने के लिए नाहन की पैराशूट रेजिमेंट और भारतीय वायुसेना ने हेलिकाप्टर की मदद से बचाव अभियान चलाया था। टिंबर ट्रेल बचाव ऑपरेशन के हीरो मेजर इवान जोसेफ क्रेस्टो थे। इस उपलब्धि के लिए कर्नल को कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया था। बचाव आपरेशन के दौरान अंधेरा होने की वजह से पहले केबल कार से आधे ही यात्रियों को बचाया जा सकता था, बाकी पांच लोगों को रात ट्रॉली में ही गुजारनी पड़ सकती थी, लेकिन मेजर क्रेस्टो ने लोगों को अकेला नहीं छोड़ा और पूरी रात उन्होंने केबल कार में ही यात्रियों के साथ बिताई थी।
रात भर गाते रहे थे गाने
मेजर इवान जोसेफ क्रेस्टो ने जब देखा कि रात हो गई है तो उन्होंने ऑपरेशन को रोक दिया। इस दौरान पर्यटक परेशान न हों, इसके लिए उन्होंने उन्हीं के साथ रात गुजारने का फैसला किया था। वह रात भर गाने गाते रहे। साथ ही उनका मनोरंजन भी करते रहे, जिससे वे घबराए नहीं। पर्यटकों को उन्होंने महसूस नहीं होने दिया कि वे ट्रॉली में फंसे हैं। सुबह होते ही बचाव अभियान शुरू किया गया और सभी को सुरक्षित निकाल लिया गया था।
बीच में फंसती ट्रॉली तो होती मुश्किल
1992 का हादसा हर लिहाज में आज के हादसे से काफी बड़ा था। उस समय ट्रॉली बीच में फंस गई थी, जहां करीब 2,000 फीट की ऊंचाई थी। उस समय आज की तरह न तो मोबाइल पर घरवालों से संपर्क कर सकते थे और न ही होटल प्रबंधकों के पास बचाव ट्रॉली थी। पर्यटक एक दिन और एक रात उसी में फंसे रहे थे, मगर किसी से मदद नहीं मांग सके। ऐसे में हेलिकाप्टर से बचाव होने के बाद उनकी जान बच सकी थी।