बिहार में 60 लाख युवा वोटर कहां से आए?
डेस्क [कृष्णा ठाकुर ] 13 जून : “अगर लोकतंत्र ज़िंदा है, तो वो सिर्फ एक कागज की लिस्ट में जिंदा है – वोटर लिस्ट में।”

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यहां हर पांच साल में एक विशाल जनसंख्या सरकार चुनती है। लेकिन जब उसी प्रक्रिया की आधारशिला—वोटर लिस्ट—पर सवाल उठने लगें, तो न सिर्फ व्यवस्था बल्कि लोकतंत्र की आत्मा तक हिल जाती है।
जनसंख्या और वोटर लिस्ट का विरोधाभास
भारत की कुल जनसंख्या का कोई अद्यतन आंकड़ा 2011 के बाद नहीं है। लेकिन चुनाव आयोग के पास हर साल वोटर डेटा होता है।
2024 में कुल वोटर – 97,79,65,560
2014 में थे – 83,40,00,000
यानी 10 साल में 14 करोड़ 38 लाख नए वोटर जुड़े। लेकिन सवाल यह है कि जब जनगणना नहीं हुई, तब ये संख्या कैसे तय हुई?
बिहार में 60 लाख युवा वोटर कहां से आए?
बिहार में नवंबर 2025 में चुनाव होने हैं।
राज्य में कुल वोटर – 7.8 करोड़
इनमें से 18 से 19 वर्ष के युवा वोटर – 64 लाख
इनमें रजिस्टर्ड सिर्फ – 8.08 लाख
यानी 56 लाख युवा अभी तक वोटर लिस्ट में नहीं हैं लेकिन दावा है कि वे जल्द जुड़ जाएंगे।
1 अक्टूबर, 2025 तक जो युवा 18 साल के हो जाएंगे, वे भी वोटर बन सकेंगे। चुनाव आयोग ऑनलाइन फॉर्म 6 के ज़रिए रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया को आसान बनाने की कोशिश कर रहा है। पर सवाल यह उठता है – अगर ये लोग पिछले एक साल में नाम नहीं जुड़वा पाए, तो क्या अगले 4 महीने में सब ऑनलाइन जुड़ जाएंगे?
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लोकसभा बनाम विधानसभा – वोटर लिस्ट में ‘जादू’
महाराष्ट्र और बिहार जैसे राज्यों में लोकसभा और विधानसभा चुनावों के बीच चौंकाने वाले अंतर देखे गए।
उदाहरण: कामठी, महाराष्ट्र
कांग्रेस को लोकसभा और विधानसभा में – लगभग समान वोट (1.34 लाख)
भाजपा को लोकसभा – 1.29 लाख, लेकिन विधानसभा में – 1.54 लाख
25,000 अतिरिक्त वोट एक झटके में कहां से आ गए?
यह दावा एक या दो नहीं, बल्कि दर्जनों विधानसभा सीटों में विपक्ष की ओर से किया गया।
चुनाव आयोग की भूमिका पर सवाल
राहुल गांधी ने संसद में वोटर लिस्ट पर चर्चा की मांग की, लेकिन चर्चा नहीं हुई। चुनाव आयोग को विपक्ष की शिकायतों पर चुप्पी साधे रखने का आरोप है।
महाराष्ट्र में 23 लाख ‘अडल्ट’ से अधिक वोटर चुनाव आयोग की लिस्ट में दर्ज हैं – जब राज्य का दावा है कि उनकी वयस्क जनसंख्या इससे कम है।
क्या ये तकनीकी खामी है? या कोई गहरी साजिश?
बिहार में चुनाव से ठीक पहले तबादलों की बाढ़
17 मई, 2025 को नए मुख्य चुनाव आयुक्त विवेक जोशी बिहार दौरे पर जाते हैं।
36 घंटे के भीतर:
1 दर्जन IAS, 6 IPS, और 36 SDO का तबादला होता है। इसके बाद राज्य स्तर पर AERO (सहायक निर्वाचक रजिस्ट्रेशन अधिकारी) की बैठक होती है, वोटर लिस्ट अपडेट करने की प्रक्रिया शुरू होती है।
क्या यह सिर्फ एक चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा है? या रणनीति?
डिजिटल युग में भी जानकारी ‘अनुचित’ क्यों?
डिजिटल वोटर लिस्ट बन चुकी है, यह खुद चुनाव आयोग कह चुका है। बावजूद इसके पार्टीज को पूरी लिस्ट तक पहुंच नहीं, जैसे महाराष्ट्र में राहुल गांधी ने शिकायत की थी कि उन्हें लिस्ट नहीं दी जा रही।
क्या लोकतंत्र के ‘पिलर’ सत्ता का हिस्सा बन गए हैं?
चुनाव आयोग की निष्पक्षता, पुलिस की भूमिका, और नौकरशाही के स्वतंत्र आचरण पर सवाल उठ रहे हैं। चुनाव से पहले ED, CBI, IT की सक्रियता बढ़ जाती है। बिज़नेस ट्रांज़ैक्शन, शराब बंदी, और हर सामाजिक गतिविधि पर जांच की तैयारी। सवाल उठता है – क्या प्रशासन चुनाव आयोग की छाया में सत्ता के लिए काम कर रहा है?
आख़िर में सवाल यही है…
क्या 2025 के बिहार चुनाव में 60 लाख वोटर अचानक जुड़ जाएंगे? क्या ये वही 60 लाख हैं जो सत्ता संतुलन बिगाड़ सकते हैं? क्या चुनाव आयोग सरकार के प्रति जवाबदेह हो गया है, ना कि जनता के प्रति?
भारत का लोकतंत्र अब सिर्फ चुनाव में सीमित नहीं है। लोकतंत्र अब आंकड़ों की जंग है। वोटर लिस्ट की हर लाइन में ताक़त है – जीत की, सत्ता की, और शायद नियंत्रण की।
क्या आप तैयार हैं, अपनी वोटर लिस्ट चेक करने के लिए?