दंगे: वजीर’ और ‘तैश’ जैसी फिल्मों के निर्देशक बिजॉय नंबियार इस बार प्रस्तुत हुए हैं, कॉलेज स्टूडेंट और कैंपस पर आधारित ‘दंगे’ में। उनकी यह फिल्म तमिल में कालिदास जयराम और अर्जुनदास के साथ ‘पोर’ नाम से रिलीज हुई है। स्टूडेंट पॉलिटिक्स, हिंसा, ड्रग्ज, रोमांस से सजी इस फिल्म में बिजॉय एक अलग दुनिया रचने में जरूर सफल रहते हैं, मगर कहानी के स्तर पर वे कमजोर साबित हो जाते हैं।
‘दंगे’ की कहानी
कहानी का बैकड्रॉप है गोवा का एक काल्पनिक सेंट मार्टिन्स यूनिवर्सिटी है। कहानी कॉलेज के स्टूडेंट्स जेवियर उर्फ जी (हर्षवर्धन राणे), ऋषिका (निकिता दत्ता) , गायत्री (टीजे भानू), अंबिका (तान्या कालरा) के इर्दगिर्द घूमती है। जेवियर कॉलेज का हीरो है, हालांकि मेडिकल का ये स्टूडेंट चार बार अटेम्प्ट करने के बावजूद अपना फाइनल क्लियर नहीं कर पाया है। ऋषिका कॉलेज में पढ़ाई के साथ-साथ ड्रग्स में डूबी हुई है, तो गायत्री कॉलेज स्टूडेंट्स की आवाज बनकर अंबिका को कॉलेज इलेक्शन में जिताकर जीएस बनाने की कोशिशों में है।
साइंस, आर्ट्स, और कॉमर्स के इस कॉलेज में गर्ल्स और बॉयज हॉस्टल भी हैं। बॉयज हॉस्टल में सीनियर्स और जूनियर्स के बीच तनातनी भी खूब चलती है। कुल मिलाकर इस कॉलेज के स्टूडेंट्स मारपीट, स्टूडेंट्स पॉलिटिक्स और ड्रग्ज में ज्यादा एक्टिव दिखते हैं और पढ़ाई-लिखाई में कम। स्टोरी में ट्विस्ट तब आता है, जब कॉलेज में नया स्टूडेंट युवा (अहान भट्ट) की एंट्री होती है।
असल में जेवियर और युवा अतीत में एक बेहद बुरे सदमे का हिस्सा रहे हैं, जिसमें युवा के साथ ऐसा कुछ घटित हुआ है, जिससे उसकी दुनिया हमेशा के लिए बदल गई और इसका जिम्मेदार वो जेवियर को मानता है। अब वो जेवियर से उसी बात का बदला लेने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है। युवा और जेवियर की आपसी लड़ाई का फायदा कुछ पॉलिटिकल लोग उठाना चाहते हैं, जिसका अंजाम बहुत बुरा होने वाला है।
‘दंगे’ मूवी रिव्यू
अमिताभ बच्चन स्टारर ‘वजीर’ के निर्देशक बिजॉय नंबियार कॉलेज के बैकड्रॉप पर अपनी कहानी को एक भव्य कैनवास पर उकेरते हैं, जहां उन्होंने आज के युवाओं की दुनिया और उनकी जटिलताओं को दर्शाने का प्रयास किया है। कहानी के फर्स्ट हाफ में वे किरदारों को स्थापित करने में वक्त लगा देते हैं, मगर सेकंड हाफ में कहानी अपनी रफ्तार पकड़ती है। इसमें कोई दो राय नहीं कि बिजॉय की ये फिल्म टेक्निकली काफी स्ट्रॉन्ग है। एक्शन, नशे और रोमांटिक सीन्स में बिजॉय कलाकारी भी दिखाते हैं, उन्होंने नियोन लाइटिंग और आर्टिस्टिक फ्रेम्स का इस्तेमाल भी खूब किया है, मगर कहानी के बिखराव को वे समेटने में कामयाब नहीं रहे।
दंगे
दंगे कहानी में तारतम्यता और डेप्थ की कमी खलती है। जिस हिंसा, अराजकता और नशे की दुनिया में ये खोए हुए हैं, उसका ठोस कारण देने में बिजॉय नाकाम रहते हैं। हालांकि कॉलेज परिसर में अराजकता फैलाने वाला उनका एक्शन हाई ऑक्टेन ड्रामा से सजा है। कहानी के कुछ स्टूडेंट पॉलिटिक्स में लोकल पॉलिटिक्स वाला ट्रैक दिलचस्प है। बैकग्राउंड म्यूजिक फिल्म का प्लस पॉइंट है और प्री क्लाइमेक्स वाले सीक्वेंस में, जहां जेवियर और युवा के ग्रुप्स की भिड़ंत होने वाली है, में ये काफी प्रभावशाली रहा है। एडिटिंग में गुंजाइश थी। फिल्म का संगीत औसत है।
अभिनय की बात की जाए तो कॉलेज परिवेश में स्थापित इस फिल्म में सभी ने अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है। जेवियर के इंटेंस अवतार में हर्षवर्धन राणे खूब जंचे हैं। किरदार के लिए की गई उनकी मेहनत पर्दे पर साफ नजर आती है। उनका लुक उनके किरदार के लिए सोने पर सुहागा साबित हुआ है। युवा की भूमिका में अहान भी उन्नीस साबित नहीं हुए हैं। कॉलेज लीडर के रूप में टीजे भानू शानदार रही हैं। ऋषिता के चरित्र में निकिता दत्ता क्यूट और प्यारी लगी हैं। तान्या कालरा और जोया मोरानी ने अपने किरदारों को बखूबी निभाया है। सहयोगी कास्ट भी अच्छी रही है।