शिमला : प्रदेश में नवजातों को जन्म देने लिए गर्भधारण किए 13,335 महिलाएं कुपोषण के जोखिम में हैं। इसके अलावा 14 हजार ऐसे बच्चे हैं, जो जन्म के समय से कम वजन के हैं। 912 गंभीर रूप से कुपोषित और 5169 मध्यम रूप से कुपोषित बच्चे हैं। यह खुलासा राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, स्वास्थ्य विभाग और महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से जुटाए आंकड़ों के आधार पर हुआ है।
मुख्यमंत्री बाल सुपोषण योजना (एमएमबीएसवाई) के तहत इन बच्चों को विटामिन डी और आयरन ड्रॉप्स उपलब्ध कराई जाएंगी, जिससे इन बच्चों को कुपोषण से निजात दिलाई जा सकेगी। इसके लिए आशा वर्कर और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की सेवाएं ली जाएंगी। जन्म के समय कम वजन वाले बच्चों के लिए प्रतिमाह अंतिम शनिवार को बाल स्वास्थ्य क्लीनिक का भी आयोजन किया जाएगा। मुख्यमंत्री बाल सुपोषण योजना के तहत गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं में कुपोषण को दूर करने के लिए प्रसव से पहले और प्रसव के बाद तीन वर्ष तक पौष्टिक आहार उपलब्ध कराए जाएंगे।वर्ष 2021- 22 में मुख्यमंत्री ने राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण – 5 में बच्चे और मां के पोषण स्तर के दृष्टिगत कार्य योजना तैयार करने की घोषणा की थी। सरकार ने इस योजना के लिए 65 करोड़ के बजट का प्रावधान किया है। छह माह से लेकर छह वर्ष तक चार लाख से अधिक बच्चों, छह वर्ष से दस वर्ष तक के पांच लाख से अधिक बच्चे, तीन लाख से अधिक किशोरियां और 94,000 धात्री माताएं लाभान्वित होंगी।
योजना के तहत छह वर्ष से कम उम्र के बच्चों को अतिरिक्त प्रोटीन युक्त भोजन उपलब्ध करवाने के अतिरिक्त कुपोषित बच्चों, धात्री माताओं और गर्भवती महिलाओं पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। योजना के तहत महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से खाद्य वस्तुओं की खरीद के विकल्प प्रदान किए गए हैं। बच्चों को बाल्यकाल में होने वाली बीमारियों और कुपोषण की समस्या के समाधान के लिए प्रदेश में डायरिया नियंत्रण, निमोनिया नियंत्रण, एनीमिया मुक्त हिमाचल जैसे विशेष अभियान चलाए जाएंगे।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के निदेशक हेमराज बैरवा ने कहा कि महिलाओं और बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए आशा वर्कर और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की सेवाएं ली जाएंगी। प्रति माह अंतिम शनिवार को बाल स्वास्थ्य क्लीनिक का भी आयोजन किया जाएगा।